निवेश के तरीके

स्टॉक मार्केट के कार्य

स्टॉक मार्केट के कार्य

National Stock Exchange of India: Meaning, Objectives and Market Segments

NSEI was incorporated in 1992 but started its operations in 1994 with trading in the wholesale debt market segment.

In November 1994, it launched the capital market segment as a trading platform for equities. Further, in June 2000, it entered futures and options segment for various derivative instruments.

A nationwide fully automated screen based trading system has since been set up at NSEI. In a nutshell, we can say that it’s the latest, most modern and technology driven exchange.

The NSEI was established by banks, insurance companies, financial institutions and other financial intermediaries. The board of members of NSEI consist of senior executives from promoter institutions and professionals who do not directly or indirectly trade on the exchange.

Objectives of NSEI:

Following are the main objectives of NSEI:

(i) To ensure equal access for investors all over the country with the help of appropriate communication network.

(ii) To provide fair, efficient and transparent trading of securities through electronic system.

(iii) To set up a nationwide trading facility for all types of securities.

(iv) To enable book entry settlement and short settlement cycles.

(v) To meet international benchmarks and standards.

Market Segments of NSEI:

NSEI trades in the following two segments:

1. Whole Sale Debt Market Segment:

This segment refers to the trading platform for a wide range of fixed income securities like central government securities, bonds issued by public sector undertakings, zero coupon bonds, treasury bills, commercial papers, certificates of deposit, mutual funds, corporate debentures etc.

2. Capital Market System:

This segment of NSEI provides a platform for transparent and fair trading of equity, preference shares, debentures, exchange traded funds as well as retail Government securities.

Uttar Pradesh Stock Exchange losing its charm

Uttar Pradesh Stock Exchange losing its charm

गलत तरीके और प्रॉपर स्टडी के बगैर इनवेस्टमेंट करने वालों को शेयर बाजार ने काफी नुकसान पहुंचाया है। इस वजह से कानपुराइट्स में स्टॉक मार्केट में इनवेस्टमेंट को लेकर चार्म काफी कम हो गया है। इसी वजह से सिटी स्थित यूपी स्टॉक एक्सचेंज में मेम्बर्स (सब-ब्रोकर्स) की संख्या भी दिन पर दिन कम होती जा रही है। हालत ये है कि जिस यूपी स्टॉक एक्सचेंज की मेम्बरशिप (लाइसेंस) हासिल करने की खातिर 40 लाख रुपए तक खर्च किए। आज वही लोग अपनी-अपनी मेम्बरशिप सरेंडर करके शेयर बाजार से ही किनारा कर चुके हैं।

282 लाइसेंस सरेंडर

सिविल लाइंस स्थित यूपी स्टॉक एक्सचेंज का इनॉग्रेशन 27 अगस्त 1982 को तत्कालीन फाइनेंस मिनिस्टर प्रणव मुखर्जी ने किया था। शुरुआती दौर में यूपीएसई के 350 से ज्यादा मेम्बर बने। मेम्बरशिप फीस करीब 14,000 रुपए थी। यूपीएसई के डायरेक्टर सुशील तुल्सयान ने बताया कि एक वक्त ऐसा भी आया। जब मेम्बरशिप के लिए मारामारी मची रहती थी। 90 के दशक में सबसे मंहगी मेम्बरशिप करीब 42 लाख रुपए में बिकी। मगर, आज की डेट में मेम्बरशिप का सेंसेक्स धड़ाम हो चुका है। ना तो मारामारी और न ही ब्रोकर बनने में कोई इंटरेस्ट। अब यह संख्या घटकर मात्र 68 ही बची है।

यूपीएसई में भी घटी लिस्टिंग

शेयर बाजार में इनवेस्टमेंट को बढ़ावा देने के लिए गवर्नमेंट ने यूपीएसई जैसे रीजनल स्टॉक एक्सचेंजेज को भी बढ़ावा दिया। छोटे और मझोले इनवेस्टर्स भी पैसा लगाएं, इसके लिए बीएसई में लिस्टेड कम्पनियों के शेयर की कीमतें यूपीएसई के इनवेस्टर्स के लिए कुछ कम कर दी गईं। लेकिन, शुरुआती दौर में मुनाफे के बाद जब नुकसान की बाढ़ आई। तो इनवेस्टर्स कम होने लगे। इसके साथ ही यूपीएसई में लिस्टेड ज्यादातर कम्पनियों ने भी अपने हाथ खींच लिए।

अब सिर्फ बीएसई के लिए

यूपी स्टॉक एक्सचेंज में जितने भी बचे हुए ब्रोकर और सब-ब्रोकर काम कर रहे हैं, वो यूपीएसई नहीं बल्कि अब बीएसई के थ्रू इनवेस्टमेंट और ट्रेडिंग करवाते हैैं। सब-ब्रोकर रमाकांत अवस्थी के अनुसार ट्रेडिंग में सब-ब्रोकर और एजेंट तक का कमीशन फिक्स होता है। मसलन, एक लाख की ट्रेडिंग पर 50-500 रुपए तक कमीशन लिया जाता है। इतने ही अमाउंट पर डिलीवरी होने पर 120 रुपए, 170 रुपए ट्रेडिंग कमीशन, जॉबिंग पर 12 रुपए जबकि ब्रोकरेज का करीब 12.50 परसेंट सर्विस टैक्स चार्ज किया जाता है। इन्हीं कमीशन के बेसिस पर यूपीएसई वेंटीलेटर के सहारे चल रहा है। ब्रोकरशिप से जॉब भली

सेंसेक्स की उठापटक से आजिज सब-ब्रोकर्स की बातों से आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता कि शेयर बाजार ने इनवेस्टर्स के साथ-साथ सब-ब्रोकर्स को भी कंगाल कर दिया। एक वक्त स्टॉक एक्सचेंज में सब-ब्रोकर की हैसियत रखने वाले अजय तिवारी आजकल कमीशन एजेंट बने हुए हैं। इसके बाद भी लाखों के नुकसान को रिकवर नहीं कर पाए। उन्होंने कहा कि शेयर मार्केट की ब्रोकरशिप से अच्छी जॉब है। कम से कम मंथ के एंड में फिक्स सैलरी तो मिलती है।

ऑफर को दूर से नमस्कार

जबर्दस्त फाइनेंशियल लॉस झेल चुके लोगों की पीड़ा का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि महज दो लाख फंड का इनवेस्टमेंट कर यूपीएसई की मेम्बरशिप हासिल की जा सकती है। फिर भी लोग इस ओर टर्नअप नहीं हो रहे। बचे हुए लोगों ने यूपीएसई के जरिए नॉमिनल फीस खर्च करके बीएसई की मेम्बरशिप ले ली। और अब वो यूपी स्टॉक एक्सचेंज से बैठकर बीएसई के लिए काम करने को मजबूर हैं।

"मैंने 1996 में आईडीबीआई के 85,000 रुपए कीमत के शेयर खरीदे थे। आज 15 साल से ऊपर हो गए हैं। अब उन्हीं शेयर्स की वैल्यू 25,000 बची है। एक जानने वाले ने मुझे फंसाया था। तब से तौबा कर ली कि शेयर में पैसा कभी इनवेस्ट नहीं करूंगा। "

1 साल का यह कोर्स कर आप भी कमा सकते हैं लाखों रुपये, जानिए- Course के बारे में

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नई दिल्ली, जेएनएन। आज के युग में मार्केटिंग, बैंकिंग, स्टॉक ब्रोकिंग, अकाउंटेंसी के क्षेत्र में दिन-प्रतिदिन प्रगति हो रही है। साथ ही इन क्षेत्रों में करियर के अवसर भी लगातार बढ़ रहे हैं। कॉमर्स स्ट्रीम के छात्रों के लिए स्टॉक ब्रोकर एक आकर्षक करियर मना जाता है। अगर आप यह समझते हैं कि सेंसेक्स और निफ्टी कैसे काम करता है और आपको इन सब क्षेत्रों में रुचि है, तो स्टॉक ब्रोकिंग क्षेत्र का चयन करना आपके करियर के लिए यकीनन सही होगा. ।

फाइनेंशियल शब्दों में स्टॉक्स और अन्य सिक्योरिटीज को खरीदने और बेचने की प्रॉसेस को ‘स्टॉक ब्रोकिंग’ कहा जाता है। हमारे देश में स्टॉक मार्केट के फील्ड में स्टूडेंट्स के लिए अभी बहुत अच्छे करियर ऑप्शंस उपलब्ध हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक, वित्त वर्ष 2018-19 में इंडियन ब्रोकिंग इंडस्ट्री की ग्रोथ रेट (पिछले वर्ष की मॉडरेट ग्रोथ रेट) 5 से 10 फीसदी से ज्यादा है और एस्टीमेटेड रेवेन्यू 19 से 20 हजार करोड़ के आसपास रहेगा। इसलिए, भारत में स्टॉक ब्रोकिंग के फील्ड में कैंडिडेट्स का भविष्य आशाजनक है और कुछ वर्षों के वर्क एक्सपीरियंस के बाद इन प्रोफेशनल्स को काफी अच्छा सालाना सैलरी पैकेज भी मिलता है।

कौन होते हैं स्टॉक ब्रोकर?

स्टॉक ब्रोकर वे होते हैं, जो शेयर मार्केट में अपने क्लाइंट के लेन-देन के मामलों को देखते हैं। एक स्टॉक ब्रोकर स्टॉक एक्सचेंज और निवेशक के बीच एक कड़ी का काम करता है। बिना ब्रोकर के कोई भी निवेशक अपना सौदा शेयर मार्केट में नहीं डाल सकता है। अगर आप शेयर स्टॉक मार्केट के कार्य मार्केट में कदम रखना चाहते हैं, तो आपको एक डीमैट अकाउंट और एक ट्रेडिंग अकाउंट की जरूरत पड़ती है। आपके ये दोनों अकाउंट एक स्टॉक ब्रोकर संभालता है। वह अपने क्लाइंट को शेयर मार्केट में हो रहे उतार-चढ़ाव की भी जानकारी देता है। वह शेयर मार्केट में कब, कैसे, क्यों पैसे निवेश करना चाहिए, यह भी बताता है। अगर किसी को शेयर मार्केट में निवेश करना हो, तो स्टॉक ब्रोकर ही सही राय दे सकता है, जिससे कि निवेश करने वाले व्यक्ति को फायदा हो।

कोर्स एवं योग्यताएं

स्टॉक ब्रोकर के रूप में अपना करियर बनाने के लिए उम्मीदवार बैंकिंग ऐंड फाइनेस में पीजी डिप्लोमा कर सकते हैं। यह एक वर्ष का कोर्स होता है, जिसमें बैंकिंग ऑपरेशंस, फाइनेंस मैंनेजमेंट, ट्रेड फाइनेंस जैसे विषय पढ़ाए जाते हैं। ग्रेजुएशन कर चुके छात्र या ग्रेजुएशन अंतिम वर्ष के छात्र पीजी डिप्लोमा इन बैंकिंग ऐंड फाइनेंस कोर्स के लिए आवेदन कर सकते हैं और स्टॉक ब्रोकर बनने की दिशा में अपना पहला कदम रख सकते हैं। इस कोर्स के लिए छात्र को कॉमर्स स्ट्रीम से 50 प्रतिशत अंकों के साथ उत्तीर्ण होना चाहिए। इस फील्ड में करियर बनाने वाले छात्रों को मार्केटिंग, बिजनेस, अकाउंटिंग और फाइनेंस जैसे क्षेत्रों में रुचि होनी चाहिए।

जॉब्स के अवसर

टीकेडब्लूएस इंस्टीटयूट ऑफ बैंकिंग ऐंड फाइनेंस के डायरेक्टर अमित गोयल का कहना है कि स्टॉक ब्रोकिंग में यदि अवसरों की बात करें, तो आप फाइनेंशियल एडवाइजर, बैंक ब्रोकर, इंडिपेंडेंट ब्रोकर, इक्विटी एनालिस्ट, स्टॉक ब्रोकिंग फर्म/कंपनी, इंवेस्टमेंट बैंकर के तौर पर भी काम कर सकते हैं। चूंकि यह मार्केटिंग और सेल्स से भी जुड़ा है, इसलिए वहां पर भी आपको काफी अच्छे अवसर मिल सकते हैं। एक स्टॉक ब्रोकर के तौर पर आप इन्वेस्टमेंट बैंक्स, पेंशन फंड्स ब्रोकिंग फम्र्स, म्यूचुअल फंड्स, फाइनेंशियल/ इंवेस्टमेंट कंसल्टेंसी जैसी जगहों पर कार्य कर सकते हैं।

याद रखने योग्य बातें

भारत में एक स्टॉक ब्रोकर के तौर पर आपका भविष्य काफी आशाजनक है, लेकिन इस फील्ड में अपना करियर शुरू करने से पहले आपके पास स्टॉक मार्केटिंग की गहरी समझ और जानकारी अवश्य होनी चाहिए। आपको यह जानना अति आवश्यक है कि स्टॉक मार्केट कैसे काम करता है। उसके बाद आपको अपने नाम का रजिस्ट्रेशन सेबी अर्थात सिक्योरिटीज ऐंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया के पास अवश्य करवाना होगा। इस क्षेत्र में काफी उतार-चढ़ाव आते हैं, जो व्यक्ति को थोड़ा परेशान कर सकते हैं। ऐसे में इन सब चैलेंजेज को फेस करने की काबिलियत होनी आवश्यक है।

Dow Jones Industrial Average (DJI)

मालविका गुरुंग द्वारा Investing.com -- सिंगापुर स्थित एक्सचेंज SGX पर सूचीबद्ध निफ्टी 50 फ्यूचर्स, निफ्टी50 के लिए एक शुरुआती संकेतक, गुरुवार को सुबह 8:55 पर 0.47% या 86.5 अंक.

ओलिवर ग्रे द्वारा Investing.com - प्रमुख बेंचमार्क सूचकांकों के नियमित सत्र के समाप्त होने के बाद, बुधवार की शाम के सौदों के दौरान अमेरिकी स्टॉक वायदा थोड़ा अधिक कारोबार कर रहा था.

यासीन इब्राहिम द्वारा Investing.com -- डॉव बुधवार के अंत में लाल निशान में फिसल गया, टेक में माइक्रोन-ईंधन की मंदी और रिटेलर लक्ष्य में भारी नुकसान के दबाव के साथ-साथ अपेक्षा से.

Dow Jones Industrial Average विश्लेषण

नैस्डैक अपने 13 अक्टूबर के बियर-मार्केट निम्न स्तर से 12.6% ऊपर हाई-ग्रोथ टेक शेयरों ने प्रभावशाली रिकवरी का मंचन किया है ब्लॉक खरीदें और स्प्लंक जैसे-जैसे मुद्रास्फीति की आशंका कम.

कल एक ऐसा दिन था जब या तो गिलास आधा भरा या आधा खाली था - यह आपके दृष्टिकोण पर निर्भर करता है। नैस्डैक से शुरू होकर, एक संभावित बियरिश 'हरामी क्रॉस' - आमतौर पर रिवर्सल सिग्नलों में.

मॉर्गन स्टेनली कहते हैं अमेरिका 2023 में मंदी से बच सकता है जबकि यूरोप और यूके इतने भाग्यशाली नहीं होंगे। हालांकि, यह जश्न मनाने का आह्वान नहीं है क्योंकि निवेश बैंक चेतावनी दे रहा.

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टॉप लूज़र्स

तकनीकी सारांश

Dow Jones Industrial Average परिचर्चा

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वित्तीय उपकरण या क्रिप्टो करेंसी में ट्रेड करने का निर्णय लेने से पहले आपको वित्तीय बाज़ारों में ट्रेडिंग से जुड़े जोखिमों एवं खर्चों की पूरी जानकारी होनी चाहिए, आपको अपने निवेश लक्ष्यों, अनुभव के स्तर एवं जोखिम के परिमाण पर सावधानी से विचार करना चाहिए, एवं जहां आवश्यकता हो वहाँ पेशेवर सलाह लेनी चाहिए।
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मार्केट कैप में 5वीं बड़ी कंपनी LIC: शेयर बाजार में LIC की वैल्यू 5.53 लाख करोड़ रुपए, जानिए मार्केट कैप और इसकी अहमियत को

अगर आपके पास भी LIC के शेयर हैं तो ये जान लीजिए की स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्ट होने के साथ ये मार्केट कैपिटलाइजेशन के लिहाज से देश की 5वीं बड़ी कंपनी बन गई है। LIC से आगे केवल इंफोसिस, HDFC बैंक, TCS और रिलायंस इंडस्ट्रीज है। LIC के शेयरों की BSE पर लिस्टिंग 949 रुपए के इश्यू प्राइस से 82 रुपए नीचे 867 पर हुई है। बाजार बंद होने पर LIC का मार्केट कैप 5.53 लाख करोड़ रुपए रहा।

ऐसे में कई लोगों के मन में ये सवाल होगा कि मार्केट कैप क्या होता है? इससे शेयर का क्या लेना-देना है? मार्केट कैप कैसे बढ़ता और घटता है? मार्केट कैप के लिहाज से अडाणी और अंबानी की टॉप कंपनियों के मुकाबले LIC कहां खड़ी है? शेयर खरीदने में मार्केट कैप की जानकारी कैसे काम आती है? तो चलिए एक-एक कर इन सवालों के जवाब जानते हैं.

मार्केट कैप क्या होता है?
मार्केट कैप किसी भी कंपनी के कुल आउटस्टैंडिंग शेयरों की वैल्यू है। इसका कैलकुलेशन कंपनी के जारी शेयरों की कुल संख्या को स्टॉक की कीमत से गुणा करके किया जाता है। मार्केट कैप का इस्तेमाल कंपनियों के शेयरों को कैटेगराइज करने के लिए किया जाता है ताकि निवेशकों को उनके रिस्क प्रोफाइल के अनुसार उन्हें चुनने में मदद मिले। जैसे लार्ज कैप, मिड कैप और स्मॉल कैप कंपनियां।

मार्केट कैप = आउटस्टैंडिंग शेयरों की संख्या x शेयर की कीमत

मार्केट कैप कैसे काम आता है?
किसी कंपनी के शेयर में मुनाफा मिलेगा या नहीं इसका अनुमान कई फैक्टर्स से लगाया जाता है। इनमें से एक फैक्टर मार्केट कैप भी होता है। निवेशक मार्केट कैप को देखकर पता लगा सकते हैं कि कंपनी कितनी बड़ी है। कंपनी का मार्केट कैप जितना ज्यादा होता है उसे उतनी ही अच्छी कंपनी माना जाता है। डिमांड और सप्लाई के अनुसार स्टॉक की कीमतें बढ़ती और घटती है। इसलिए मार्केट कैप उस कंपनी की पब्लिक पर्सीवड वैल्यू होती है।

मार्केट कैप कैसे घटता-बढ़ता है?
मार्केट कैप के फॉर्मूले से साफ है कि कंपनी के जारी शेयरों की कुल संख्या को स्टॉक की कीमत से गुणा करके इसे निकाला जाता है। यानी अगर शेयर का भाव बढ़ेगा तो मार्केट कैप भी बढ़ेगा और शेयर का भाव घटेगा तो मार्केट कैप भी घटेगा। इसे एक उदाहरण से समझते हैं। रिलायंस का शेयर 16 मई को 2427.40 रुपए में बंद हुआ था। आउटस्टैंडिंग शेयरों की संख्या से इसका गुणा करने पर इसकी वैल्यू 1642141.01 करोड़ रुपए होती है। अगले दिन 17 मई को शेयर प्राइस 2530.70 रुपए पर पहुंच गया। ऐसे में इसका मार्केट कैप भी बढ़कर 17,12,023.67 करोड़ रुपए हो गया।

टॉप कंपनियों के मुकाबले LIC कहां खड़ी है?
आज की मार्केट क्लोजिंग के हिसाब से LIC का मार्केट वैल्यूएशन 5,53,721.92 करोड़ रुपए रहा है। मुकेश अंबानी की कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज मार्केट कैप के लिहाज से पहले नंबर पर है। इसका मार्केट कैप 17,12,023.67 करोड़ रहा। दूसरे नंबर पर TCS है जिसका मार्केट कैप 12,63,177.71 करोड़ रहा। तीसरे नंबर पर 7,29,464.56 करोड़ के मार्केट कैप के साथ HDFC बैंक और चौथे नंबर पर इंफोसिस है जिसका मार्केट कैप 6,38,869.36 करोड़ रुपए रहा। टॉप टेन में अडाणी ग्रुप की एक भी कंपनी नहीं है। अडाणी ग्रीन 12वें नंबर पर है जिसका मार्केट कैप 3,57,713.53 करोड़ है।

HDFC लाइफ से 5 गुना ज्यादा मार्केट कैप
इंडियन लाइफ इंश्योरेंस कंपनीज में LIC स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्ट होने वाली चौथी कंपनी है। LIC से पहले ICICI प्रूडेंशियल (29 सितंबर 2016), SBI लाइफ (3 अक्टूबर 2017) और HDFC लाइफ (17 नवंबर 2017) लिस्ट हो चुके हैं। इन कंपनियों का मार्केट कैप मंगलवार को 71,974.23 करोड़, 1,06,349.39 करोड़ और 1,17,218.67 करोड़ रुपए रहा। इस हिसाब से देखे तो LIC का मार्केट कैप दूसरी बड़ी इंश्योरेंस कंपनी HDFC लाइफ से लगभग 5 गुना ज्यादा है।

इश्यू 2.95 गुना सब्सक्राइब हुआ था
LIC के IPO को निवेशकों से अच्छा रिस्पॉन्स मिला था। हालांकि, अट्रैक्टिव वैल्यूएशन के बावजूद ये विदेशी और संस्थागत निवेशकों को लुभाने में विफल रहा। रिटेल और अन्य निवेशकों के लिए 4 मई को खुले इस IPO के सब्सक्रिप्शन का 9 मई को आखिरी दिन था। इश्यू 2.95 गुना सब्सक्राइब हुआ था। 16.2 करोड़ शेयरों के मुकाबले 47.77 करोड़ शेयरों के लिए बोलियां मिलीं थी। LIC ने 2 मई को 949 रुपए के हिसाब से 59.3 मिलियन शेयर के बदले 123 एंकर निवेशकों से 5,630 करोड़ रुपए जुटाए थे।

पॉलिसीधारकों का पोर्शन 6.10 गुना भरा
पॉलिसीधारकों के लिए रिजर्व रखा गया पोर्शन 6.10 गुना, स्टाफ 4.39 गुना और रिटेल निवेशकों का हिस्सा 1.99 गुना सब्सक्राइब हुआ था। QIB के आवंटित कोटे के लिए 2.83 गुना बोलियां आई थी, जबकि NII का हिस्सा 2.91 गुना सब्सक्राइब हुआ थी। 17 मई को शेयर स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्ट हुए। ज्यादातर मार्केट एनालिस्ट ने IPO में पैसा लगाने की सलाह दी थी।

इश्यू 'आत्मनिर्भर भारत' की ताकत
डिपार्टमेंट ऑफ इन्वेस्टमेंट एंड पब्लिक एसेट मैनेजमेंट (DIPAM) सेक्रेटरी तुहिन कांता पांडे ने कहा था कि रूस-यूक्रेन जंग के कारण LIC के IPO में देरी हुई। उन्होंने इस इश्यू को सक्सेसफुल बताया था। फॉरेन इन्वेस्टर्स के उम्मीद के मुताबिक निवेश नहीं करने के एक सवाल के जवाब में पांडे ने कहा था कि LIC IPO आत्मनिर्भर भारत की ताकत को दर्शाता है। इस इश्यू ने दिखाया है कि हमारे कैपिटल मार्केट्स और हमारे निवेशकों में भी क्षमता है. हम केवल विदेशी संस्थागत निवेशकों पर निर्भर नहीं रह सकते।

LIC का इतिहास
जिंदगी के साथ भी, जिंदगी के बाद भी' के टैगलाइन वाली LIC की शुरुआत 66 साल पहले हुई थी। कई लोग अभी भी इंश्योरेंस मतलब LIC ही समझते हैं। 19 जून 1956 को संसद ने लाइफ इंश्योरेंस कॉर्पोरेशन एक्ट पारित कर इसके तहत देश में कार्य कर रहीं 245 प्राइवेट कंपनियों का अधिग्रहण कर लिया था। इस तरह 1 सितंबर 1956 को LIC अस्तित्व में आया था।

देश में ऐसे काफी कम परिवार होंगे, जो डायरेक्ट या इनडायरेक्ट रूप से LIC से न जुड़े हो। फिर चाहे वह बीमा धारक हो या एजेंट या फिर इसमें कार्य करने वाला कर्मचारी। आज LIC में 1.2 लाख कर्मचारी काम करते हैं, जबकि करीब 30 करोड़ बीमा पॉलिसियां अस्तित्व में हैं। देशभर में इसके करीब 13 लाख एजेंट हैं। अहम बात यह भी है कि इन्हें मिलने वाले करीब 20 हजार करोड़ रुपए के कमीशन से भी न जाने कितने परिवारों के पेट पल रहे हैं।

LIC की ग्रोथ की बात करें तो 1956 में LIC के देशभर में 5 जोनल ऑफिस, 33 डिवीजनल ऑफिस और 209 ब्रांच ऑफिस थे। आज 8 जोनल ऑफिस, 113 डिवीजनल ऑफिस और 2,048 फुली कंप्यूटराइज्ड ब्रांच ऑफिस हैं। इनके अलावा 1,381 सैटेलाइट ऑफिस भी हैं। 1957 तक LIC का कुल बिजनेस करीब 200 करोड़ था। आज यह 5.60 लाख करोड़ है।

सरकार ने LIC में अपनी हिस्सेदारी क्यों बेची?
एक्सपर्ट्स का इसे लेकर कहना है कि इंडियन इकोनॉमी कोरोना की वजह से मुश्किल दौर में है। सरकार की देनदारी काफी ज्यादा बढ़ गई है। सरकार को पैसे की सख्त जरूरत है और वह अपनी फंडिंग जरूरतों को पूरा करने के लिए बहुत ज्यादा उधार नहीं लेना चाहती। इस समय ऐसा करने का शायद यही सबसे बड़ा कारण है।

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