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अपसारी श्रेणी

अपसारी श्रेणी
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वेदों के मंत्र गणित पर आधारित

मुरादाबाद। टीएमयू के फैकल्टी ऑफ इंजीनियरिंग में गणित विभाग की ओर से एंशिएंट मैथमैटिक्स एंड इट्स इमर्जिंग एरियाज- एएमईए 2022 पर एक दिवसीय कार्याशला हुई। आईआईटी रुड़की के डॉ. उदय सिंह ने फूरियर अनंत श्रेणी पर व्याख्यान दिया। प्रो नागेंद्र कुमार ने कहा कि सूर्य में ठोस प्लाज़्मा और इसके विभिन्न प्रकारों की जानकारी दी। प्रो आरके द्विवेदी ने कहा कि भारत की ओर से किया गया शून्य का आविष्कार ही गणित एवं कम्प्यूटिंग का आधार है। कांफ्रेंस में उत्तराखंड, केरल, तमिलनाडु, आसाम, पंजाब, हरियाणा, नई दिल्ली, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के 92 शोधार्थी मौजूद रहे। 42 शोध पत्र पढ़े गए। मुख्य-अतिथि गुरु गोविंद सिंह इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी, नई दिल्ली की प्रोफेसर डॉ. रश्मि भारद्वाज ने बतौर मुख्य-वक्ता प्राचीन गणित, इसके अनुप्रयोग और फ्रैक्टल सिद्धांत पर अपने अनुभव साझा अपसारी श्रेणी करते हुए कहा, वेदों के मंत्र गणित पर आधारित हैं। गणित प्रकृति में है, हमें इसे देखने और महसूस करने की आवश्यकता है। भारतीय प्राचीन मंदिरों के गर्भगृह गुरुत्वाकर्षण के केंद्र में स्थित हैं। आईआईटी रुड़की के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. उदय सिंह ने अनंत श्रेणी के बारे में प्रकाश डालते हुए इस श्रेणी के अनुप्रयोग एवं इसकी सार्थकता का वर्णन किया। डॉ. सिंह ने अनंत श्रेणी के अभिसारी और अपसारी होने की दशा का उल्लेख किया तथा प्राचीन गणित और उभरते गणित में इसकी भूमिका पर चर्चा की। तकनीकी सत्र की अध्यक्षता एमएमएच कॉलेज गाजियाबाद के प्रोफेसर मुख्य वक्ता डॉ. नागेंद्र कुमार ने की । डॉ. नागेंद्र ने डायनामिक सूर्य एवं एमएचडी वेव्स पर अपना व्याख्यान दिया। डॉ. नागेंद्र ने सूर्य की गति एवं संरचना पर प्रकाश डालते हुये कहा, पृथ्वी से सूर्य की दूरी, इसकी त्रिज्या और हाइड्रोजन परमाणु के फ़्यूज़न के बारे में बताते हुए कहा, इन सभी गणनाओं को डिफरेंशियल समीकरण के माध्यम से हल किया गया है। वैलेडिक्टरी सेशन में कांफ्रेंस कंवीनर डॉ. विपिन कुमार ने कांफ्रेंस रिपोर्ट प्रस्तुत किया। कांफ्रेंस ऑर्गनाइज़िंग सेक्रेटरी डॉ. अभिनव सक्सेना ने सभी का आभार व्यक्त किया। विवि रजिस्ट्रार डॉ. आदित्य शर्मा, डॉ. मंजुला जैन, डॉ. ज्योति पुरी, डॉ. विपिन कुमार, डॉ. अजीत कुमार प्रो. अशेंद्र कुमार सक्सेना, डॉ. आरके जैन, डॉ. हिमाश कुमार, अजय चक्रवर्ती, शिखा गंभीर, मनोज गुप्ता, राजेश कुमार आदि मौजूद रहे।

हरात्मक श्रेणी का अंग्रेजी अर्थ

गणित में हरात्मक श्रेणी अपसारी अनन्त श्रेणी है:

In mathematics, the harmonic series is the infinite series formed by summing all positive unit fractions:

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और देखें

हरात्मक श्रेणी का अंग्रेजी मतलब

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"हरात्मक श्रेणी" के बारे में

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अपसारी श्रेणी

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Origin And Evolution Of Life

एन्जाइम्स जिनके अणुभार में केव .

Updated On: 27-06-2022

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समवृत्ति अंग का जो अपसारी विकास के कारण विकसित हुए हैं। समजात अंग का जो अभिसारी विकास के कारण विकसित समजात अंग का जो अपसारी विकास के कारण विकसित हुए हैं। समवृत्ति अंग का जो अभिसारी विकास के कारण विकसित हुए हैं।

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Srinivasa ramanujan biography in hindi- श्रीनिवास रामानुजन 2022

srinivasa ramanujan biography in hindi:- श्रीनिवास रामानुजन भारत के महान एवं प्रसिद्ध गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन का जन्म 22 दिसम्बर , सन् 1867 को भारत के ईरोड नामक स्थान पर हुआ था । इन्होंने संस्था सिद्धांत का प्रतिपादन किया । इस सिद्धांत में विभाजन फलन के गुणधर्मों की खोज सम्मिलित है । रामानुजन द्वारा अर्जित किया गया सम्पूर्ण गणित ज्ञान अद्भुत व विचित्र था ।

हालांकि इस क्षेत्र के पूर्ववर्ती विकास के बारे में वह बिल्कुल अनभिज्ञ थे , सतत् भिन्न पर उनकी दक्षता का कोई भी गणितज्ञ मुकाबला नहीं कर सकता । उन्होंने रीमैन श्रेणी , दीर्घ समाकलन , हाइपरज्योमेट्रिक श्रेणी , जीटा फलन के फलनिक समीकरणों को हल किया तथा अपसारी श्रेणी का अपना सिद्धांत खोज निकाला ।

दूसरी तरफ , उनके ज्ञान की रिक्तियां भी चौंकाने वाली में वह द्विआवर्ती प्रकार्य , प्रतिष्ठित द्विघाती समघात या कौशी परिमेय के बारे में कुछ नहीं जानते थे । उन्हें गणितीय प्रमाण के बारे में बेहद धुंधली जानकारी थी । वह प्रतिभाशाली थे , लेकिन अभाज्य संख्या सिद्धांत के बारे में उनके कई प्रमेय पूरी तरह गलत थे । इंग्लैंड अपसारी श्रेणी में रामानुजन ने विशेष रूप से संख्या विभाजन के बारे में आगे शोध किया ।

उनके शोध पत्र अंग्रेजी एवं यूरोपीय पत्रिकाओं में छपे और सन् 1918 में वह पहले भारतीय बने , जिन्हें रॉयल सोसाइटी ऑफ लंदन के लिए चुना गया । सन् 1917 में रामानुजन को क्षय रोग हो गया , लेकिन हालत में कुछ सुधार के बाद 1919 ई . में वह भारत लौट आए ।

Srinivasa ramanujan biography in hindi

आमतौर पर विश्व के लिए अनजान , लेकिन गणितज्ञों के लिए लियनहार्ड यूलर ( 1707-88 ) और कार्ल जैकोबी ( 1804-51 ) के बाद अद्वितीय और अपूर्व प्रतिभावान रामानुजन का अगले ही वर्ष देहांत हो गया । जब रामानुजन 15 साल के थे , उन्होंने जॉर्ज शूब्रिज कार की सिनीप्सिस ऑफ एलीमेंटरी रिजल्ट्स इन प्योर एंड अप्लाइड मैथेमेटिक्स , दो खंड ( 1980-86 ) की एक विश्व के महान वैज्ञानिक 6 प्रति प्राप्त की । करीव 6,00 प्रमेयों के संकलन ( कोई भी सामग्री 1860 के बाद की नहीं थी ) ने उनकी प्रतिमा को जागृत किया ।

कार की पुस्तक के परिणामों की पुष्टि करने के बाद रामानुजन ने इससे आगे जाकर खुद की प्रमेयों एवं धारणाओं को विकसित किया । सन् 1903 में उन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय के लिए छात्रवृत्ति पाई , लेकिन गणित में मग्न रहने और अन्य विषयों की अनदेखी के कारण अगले ही साल उन्हें छात्रवृत्ति से हाथ धोना पड़ा ।

Srinivasa ramanujan biography in hindi

बेरोजगारी और विपरीत परिस्थितियों में रहने के बावजूद रामानुजन अपने कार्य में लगे रहे । सन् 1909 में शादी के बाद वह स्थायी नौकरी की तलाश में लग गए , जिसकी परिणति एक सरकारी अधिकारी रामचंद्र राव के साथ साक्षात्कार में हुई । रामानुजन के गणितीय कौशल से प्रभावित होकर राव ने कुछ समय तक उनके अनुसंधान में सहायता की , लेकिन दान पर निर्भर रहने के अनिच्छुक रामानुजन ने मद्रास बंदरगाह न्यास में लिपिक पद पर काम करना शुरू कर दिया ।

सन् 1911 में रामानुजन ने जर्नल ऑफ द इंडियन मैथेमेटिक्स सोसाइटी में अपने पहले शोधपत्र प्रकाशित कराए । उनकी प्रतिभा को धीरे – धीरे मान्यता मिली और 1913 ई . में उन्होंने अंग्रेज गणितज्ञ गॉडफ्रे एच.हार्डी से पत्राचार शुरू किया , जिसके परिणामस्वरूप उन्हें मद्रास विश्वविद्यालय से विशेष छात्रवृत्ति एवं ट्रिनिटी कॉलेज , केंब्रिज से अनुदान प्राप्त हुआ । अपने धार्मिक संस्कारों पर विजय पाते हुए रामानुजन 1914 ई . में इंग्लैंड गए , जहां हार्डी ने उन्हें पढ़ाया तथा उनके कुछ शोध कार्यों में भी सहयोग दिया ।

21 नवम्बर सन् 1970 को इस महान गणितज्ञ का तमिलनाडु के कुंबकोणम नामक स्थान पर देहान्त हो गया । आज रामानुजन हमारे नहीं पायेंगे । बीच नहीं है लेकिन उनके द्वारा दिये गये योगदानों व कार्यों को हम कभी भी भुला अपसारी श्रेणी नहीं पायेंगे

गुणोत्तर श्रेणी

गुणोत्तर श्रेणी और सर्वनिष्ट अनुपात [ सम्पादन ]

गुणोत्तर श्रेणी के कई गुण उसके सर्वनिष्ट अनुपात r पर निर्भर करते हैं।

  • यदि r का मान −1 तथा +1 के बीच हो तो, इस श्रेणी के पदों का संख्यात्मक मान क्रमशः छोटा ही छोटा होता चला जाएगा (अर्थात शून्य की ओर अग्रसर होता चला जाएगा।) । ऐसी श्रेणी के अनन्त पदों का योग एक सीमित संख्या होगी (अनन्त नहीं)।
  • यदि r का मान एक से बड़ा हो या ऋण एक से कम हो तो ऐसी गुणोत्तर श्रेणी के पदों का मान क्रमशः बड़े से बड़ा होता चला जाएगा। अतः ऐसी श्रेणी के अनन्त पदों का योग सीमित नहीं होगा (अर्थात यह श्रेणी अपसारी श्रीणी (Divergent series) है।)
  • यदि r का मान ठीक-ठीक एक अपसारी श्रेणी हो तो इस श्रेणी के सभी पद समान होंगे। यह श्रेणी भी अभिसारी नहीं है।
  • यदि r का मान ऋण एक हो तो इस श्रेणी के पदों का संख्यात्मक मान वही रहेगा किन्तु उनका चिह्न एक के बाद दूसरा बदलता जाएगा। (जैसे. 2, −2, 2, −2, 2. ). इस कारण पदों का योग भी एक बार बढेगा, फिर घटेगा, फिर बढ़ेगा. । अर्थात योग दोलनकारी (Oscillatory) होगा। यह भी एक प्रकार का अपसार ही है और श्रेणी का कोई निश्चित योग नहीं है। उदाहरण के लिए, श्रेणी: 1 − 1 + 1 − 1 + ··· को जोड़ने का यत्न कीजिए और देखिए क्या होता है।

योग [ सम्पादन ]

किसी गुणोत्तर श्रेणी का योग (अनन्त पदों का योग) एक सीमित संख्या होगी यदि उसके सर्वनिष्ट अनुपात r का संख्यात्मक मान १ से कम हो। ऐसी स्थिति में उस श्रेणी के बाद वाले पद नगण्य होते चले जाते हैं और उस श्रेणी में अनन्त पद होने के बावजूद भी योग अनन्त नहीं, सीमित होता है।

उदाहरण [ सम्पादन ]

A self-similar illustration of the sum s. Removing the largest circle results in a similar figure of 2/3 the original size.

माना हम निम्नलिखित श्रेणी का योग निकालना चाहते हैं-

This series has common ratio 2/3. If we multiply through by this common ratio, then the initial 1 becomes a 2/3, the 2/3 becomes a 4/9, and so on:

This new series is the same as the original, except that the first term is missing. Subtracting the new series (2/3)s from the original series s cancels every term in the original but the first,

A similar technique can be used to evaluate any self-similar expression.

सूत्र [ सम्पादन ]

a + ar + a r^2 + a r^3 + \cdots + a r^ = \sum_^ ar^k= a \left(\frac>\right),

where साँचा:Math is the first term of the series, and साँचा:Math is the common ratio. We can derive this formula as follows:

\begin s &= a + ar + ar^2 + ar^3 + \cdots + ar^, \\ rs &= ar + ar^2 + ar^3 + ar^4 + \cdots + ar^, \\ s - rs &= a-ar^, \\ s(1-r) &= a(1-r^), \end so,

As साँचा:Math goes to infinity, the absolute value of साँचा:Math must be less than one for the series to converge. The sum then becomes

When साँचा:Math, this can be simplified to

the left-hand side being a geometric series with common ratio साँचा:Math.

The formula also holds for complex साँचा:Math, with the corresponding restriction, the modulus of साँचा:Math is strictly less than one.

अभिसार का प्रमाण [ सम्पादन ]

We can prove that the geometric series converges using the sum formula for a geometric progression:

1 + r + r^2 + r^3 + \cdots \ &= \lim_ \left(1 + r + r^2 + \cdots + r^n\right) \\ &= \lim_ \frac>. \end Since (1 + r + r 2 + . + r n )(1−r) = 1−r n+1 and साँचा:Nowrap for | r | < 1.

Convergence of geometric series can also be demonstrated by rewriting the series as an equivalent telescoping series. Consider the function,

1 = g(0) - g(1)\ ,\ r = g(1) - g(2)\ ,\ r^2 = g(2) - g(3)\ , \ldots Thus,

S = 1 + r + r^2 + r^3 + \cdots = (g(0) - g(1)) + (g(1) - g(2)) + (g(2) - g(3)) + \cdots . If

g(K)\longrightarrow 0 \text < as >K \to \infty. So S converges to

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