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सबसे कम ब्रोकरेज कौन लेता है

सबसे कम ब्रोकरेज कौन लेता है
एलआईसी आईपीओ के जरिये बेचे जा रहे 21.13 करोड़ में पॉलिसीहोल्डर्स को भी आरक्षण मिलेगा.

Car Loan Tips: छोटा टेन्योर या लंबा, कौन सा ऑप्शन आपके लिए रहेगा सही?

Car Loan Tips in Hindi: कर्ज लेते समय उधारकर्ता को कई निर्णय लेने की आवश्यकता होती है जैसे कि कौन सा ईएमआई विकल्प चुनना है, किस अवधि को चुनना है, सबसे कम ब्रोकरेज कौन लेता है आदि.

By: ABP Live | Updated at : 17 Nov 2021 04:38 PM (IST)

Car Loan Tips in Hindi

Car Loan Tips: घर या कार ख़रीदना उन बड़े वित्तीय फैसलों में से एक है जो कोई भी लेता है. कर्ज लेते समय उधारकर्ता को कई निर्णय लेने की आवश्यकता होती है, जैसे कि कौन सा ईएमआई विकल्प चुनना है, किस अवधि को चुनना है, आदि. आम तौर पर, ऋणदाता अधिकतम 7 से 8 वर्षों के कार्यकाल के लिए कार लोन प्रदान करते हैं. उदाहरण के लिए, एसबीआई 7 साल के टेन्योर के लिए कार लोन सबसे कम ब्रोकरेज कौन लेता है प्रदान करता है. विशेषज्ञों का कहना है कि कार लोन का विकल्प चुनते समय, भले ही ऋणदाता अब लंबी अवधि की पेशकश करते हैं, उधारकर्ताओं को ईएमआई को ध्यान में रखते हुए छोटी अवधि का विकल्प चुनना चाहिए.

कम टेन्योर होने से अधिक ईएमआई अमाउंट का भुगतान किया जा सकता है. हालांकि, भले ही कम अवधि का मतलब अधिक ईएमआई का भुगतान करना है, लेकिन इसका मतलब ब्याज लागत में कमी भी है. इसलिए, एक छोटा कार्यकाल होने से आप अपने लोन का भुगतान जल्दी कर पाएंगे.

लंबा टेन्योर मतलब ज्यादा ब्याज
उदाहरण के लिए, यदि आप 8.5 प्रतिशत की ब्याज दर के साथ 10 लाख रुपये का कार लोन लेते हैं, तो 4 साल के कार लोन की ईएमआई लगभग 24,000 रुपये होगी, जबकि 8 साल के कार लोन के लिए ईएमआई लगभग 14,000 रुपये होगी, जो कि 4 साल के टेन्योर में आपको जो भुगतान करना होगा, उसका लगभग आधा है. 4 साल के कार लोन पर चुकाया गया ब्याज लगभग 1.83 लाख रुपये आता है, जबकि 8 साल के कार लोन पर चुकाया गया ब्याज लगभग 3.81 लाख रुपये आता है, जो कि 4 साल में चुकाए गए ब्याज से दोगुना से अधिक है.

आमतौर पर, लोग लंबी अवधि का टेन्योर चुनते हैं तोकि कर्ज चुकाने के लिए उन्हें अतिरिक्त समय मिल जाए हालांकि, इसमें उच्च ब्याज व्यय और अतिरिक्त वित्तीय बोझ भी शामिल है. ध्यान रखें, आप जितने लंबे कार-लोन टेन्योर का विकल्प चुनते हैं, आपके लिए उतना ही अधिक ब्याज खर्च होगा. इसलिए, विशेषज्ञों का सुझाव है कि उच्च ब्याज से बचने के लिए उधारकर्ता को लंबी अवधि के लिए ऋण लेने से बचना चाहिए.

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विचार करने का एक और बिंदु यह है कि छोटे लोन टेन्योर की तुलना में, लंबी अवधि पर ब्याज दरें अधिक होती हैं. ऋणदाता आमतौर पर लंबी अवधि के लिए कार लोन पर लगभग 50 आधार अंकों की उच्च ब्याज दर वसूलते हैं. उद्योग के विशेषज्ञों का कहना है कि यह अतिरिक्त ऋण जोखिम की भरपाई के लिए बैंकों/ऋणदाताओं का तरीका है जो वे उधारकर्ता से ले रहे हैं.

कार की औसत उपयोग अवधि
एक और ध्यान देने योग्य बात यह है कि कार की औसत उपयोग अवधि आमतौर पर 5-6 वर्ष होती है, जिसके बाद इसे या तो बेचा जाता है या पुराने डीलर को दिया जाता है. विशेषज्ञों का कहना है कि लंबी अवधि के ऋण की अवधि एक परेशानी बन जाती है क्योंकि कार मालिक को कार को बेचने के बाद भी बकाया ऋण चुकाना जारी रखना होगा. इसके साथ ही कार निर्माता आमतौर पर 8 साल की वारंटी नहीं देते हैं, इसलिए कार खरीदने के शुरुआती कुछ वर्षों के बाद भारी रखरखाव शुल्क लगेगा. ईएमआई के साथ उच्च रखरखाव शुल्क आपके लिए भारी वित्तीय बोझ बन सकता है.

विशेषज्ञों का कहना है कि भले ही ज्यादातर लोग कार खरीदने का सपना देखते हैं, लेकिन वे एक मूल्यह्रास संपत्ति हैं, जिसे उधारकर्ताओं को ध्यान में रखना चाहिए. इसलिए, कार लोन चुनते समय सावधान रहें. ब्याज दर के साथ-साथ प्रोसेसिंग शुल्क, प्री-पेमेंट शुल्क और कार लोन से जुड़े अन्य शुल्कों की भी जांच करें. इसके अतिरिक्त, एक अच्छे क्रेडिट स्कोर के साथ, एक उधारकर्ता बेहतर दरों और शुल्कों की छूट के लिए ऋणदाता के साथ बातचीत कर सकता है.सबसे कम ब्रोकरेज कौन लेता है

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Published at : 17 Nov 2021 03:38 PM (IST) Tags: car loan Car loan EMI car loan Interest rate SBI Car Loan car loan calculator car loan eligibility car loan emi calculator car loan interest rate 2020 car loan hdfc हिंदी समाचार, ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें abp News पर। सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट एबीपी न्यूज़ पर पढ़ें बॉलीवुड, खेल जगत, कोरोना Vaccine से जुड़ी ख़बरें। For more related stories, follow: Business News in Hindi

नए निवेशकों के लिए बिना रिसर्च के शेयर बाजार में निवेश से खतरा, म्यूचुअल फंड है बेहतर विकल्प

high risk for new investors in share market, mutual fund is better option

अगर आप बीमार होते हैं या स्वास्थ्य संबंधी कोई समस्या होती है तो आप क्या करेंगे? इसका आसान उत्तर होगा कि आप डॉक्टर के पास जाकर बीमारी का दवा लेंगे। इसी तरह आयकर से जुड़े मामले के लिए आप बिना हिचक एक चार्टर्ड अकाउंटेंट से मदद लेंगे।

अगर आपकी कार खराब हो जाती है और कोई विशेष समस्या है तो आप किसी अच्छे मैकेनिक के पास जाएंगे। उपर्युक्त सभी मामलों में आप ऐसे पेशेवर विशेषज्ञों से सहायता लेना चाहते हैं, जो उस विषय को अच्छी तरह जानता है और आपको उपयुक्त समाधान देने में सक्षम है।

वित्तीय प्रबंधन में ऐसा क्यों नहीं करते

ज्यादातर लोग अपने व्यक्तिगत वित्त प्रबंधन या निवेश का निर्णय काफी हद तक खुद ही कर लेते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो ज्यादातर निवेशक अपने निवेश का फैसला बिना किसी विशेषज्ञ की मदद से कर लेते हैं। सही निवेश निर्णय लेने के लिए समझदारी के साथ विशेषज्ञता बहुत ही जरूरी है। यह सही जगह एसेट एलोकेशन और सही फंड चुनाव में मदद करता है। निवेश का प्रबंधन करना एक पूर्णकालिक कार्य है।

छोटे निवेशक म्यूचुअल फंड चुनें

शेयर बाजार में बिना सही तरीके से रिसर्च के पैसा लगाने पर बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है। मैं छोटे निवेशकों को सलाह देना चाहता हूं कि वे सीधे इक्विटी में निवेश के बदले म्यूचुअल फंड में निवेश करें। ऐसा इसलिए कि म्यूचुअल फंड का प्रबंधन बहुत ही अच्छे तरीके से किया जाता है।

फंड मैनेजर शेयरों का विश्लेषण करते हैं। फंड मैनेजरों द्वारा निवेश का फैसला बहुत ही रिसर्च के बाद किया जाता है। जब फंड मैनेजर को लगता है कि कंपनी लंबी अवधि में अच्छे तरीके से प्रदर्शन करेगी और निवेश पर शानदार रिटर्न मिलेगा तभी वो निवेश करने की सलाह देते सबसे कम ब्रोकरेज कौन लेता है हैं।

अनुभव में हमने देखा है कि जो खुदरा निवेशक शेयर बाजार में सीधे निवेश करते हैं नुकसान ही उठाते हैं। आमतौर पर वे अपने पोर्टफोलियो में बहुत अधिक शेयर खरीद लेते हैं। इस चक्कर में यदि उनको कमाई होती भी है, तो वह बाजार के औसत रिटर्न से कम होती है।

ऐसा कंपनी के विषय में सही समझ नहीं होने और शेयरों की अधिक सबसे कम ब्रोकरेज कौन लेता है मूल्य पर खरीददारी से होता है। निवेशकों को नुकसान उठाना पड़ता है। इसके चलते कई बार निवेश की हुई पूंजी का लौटना भी मुश्किल हो जाता है।

इसके अलावा शेयरों की जल्दी खरीदारी और बिक्री पर निवेशकों को कई अतिरिक्त शुल्क चुकाने होते हैं जैसे ब्रोकरेज शुल्क। इसके चलते कई दफा मिलने वाले रिटर्न के मुकाबले शेयरों की खरीद-बिक्री पर लगने वाला शुल्क काफी ज्यादा हो जाता है।

म्यूचुअल फंड की ये हैं विशेषताएं

म्यूचुअल फंड के मामले में पहला, फंड मैनेजर सक्रिय आधार पर कम स्टॉक का मालिकाना सुनिश्चित करता है। साथ ही विभिन्न स्टॉक और सेक्टरों में जोखिम को आंकते हुए एक विविध पोर्टफोलियो बनाता है।

दूसरा, फंड मैनेजर कंपनियों के व्यावसायिक मॉडल और मूल्यांकन के बारे में गंभीरता से और लगातार पता करता रहता है। इसके बाद ही वह निर्णय लेता है कि कौन-सी कंपनी में निवेश को बनाए रखना और किस से निकलना है।

तीसरा, म्यूचुअल फंड में कम लागत के साथ बेहतर रिटर्न मिलता है।

चौथा, म्यूचुअल फंड मार्ग के माध्यम से निवेश करने के कुछ अन्य लाभ भी हैं। ये लाभ हैं कर की बचत, कम लागत और पारदर्शी निवेश। सेबी द्वारा इसे विनियमित करने से हमेशा निवेशकों के हितों का खास ख्याल रखा जाता है।

अखिल चतुर्वेदी, कार्यकारी उपाध्यक्ष, हेड, सेल्स एंड डिस्ट्रीब्यूशन, मोतीलाल ओसवाल एएमसी

अगर आप बीमार होते हैं या स्वास्थ्य संबंधी कोई समस्या होती है तो आप क्या करेंगे? इसका आसान उत्तर होगा कि आप डॉक्टर के पास जाकर बीमारी का दवा लेंगे। इसी तरह आयकर से जुड़े मामले के लिए आप बिना हिचक एक चार्टर्ड अकाउंटेंट से मदद लेंगे।

अगर आपकी कार खराब हो जाती है और कोई विशेष समस्या है तो आप किसी अच्छे मैकेनिक के पास जाएंगे। उपर्युक्त सभी मामलों में आप ऐसे पेशेवर विशेषज्ञों से सहायता लेना चाहते हैं, जो उस विषय को अच्छी तरह जानता है और आपको उपयुक्त समाधान देने में सक्षम है।

वित्तीय प्रबंधन में ऐसा क्यों नहीं करते

ज्यादातर लोग अपने व्यक्तिगत वित्त प्रबंधन या निवेश का निर्णय काफी हद तक खुद ही कर लेते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो ज्यादातर निवेशक अपने निवेश का फैसला बिना किसी विशेषज्ञ की मदद से कर लेते हैं। सही निवेश निर्णय लेने के लिए समझदारी के साथ विशेषज्ञता बहुत ही जरूरी है। यह सही जगह एसेट एलोकेशन और सही फंड चुनाव में मदद करता है। निवेश का प्रबंधन करना एक पूर्णकालिक कार्य है।

छोटे निवेशक म्यूचुअल फंड चुनें

शेयर बाजार में बिना सही तरीके से रिसर्च के पैसा लगाने पर बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है। मैं छोटे निवेशकों को सलाह देना चाहता हूं सबसे कम ब्रोकरेज कौन लेता है कि वे सीधे इक्विटी में निवेश के बदले म्यूचुअल फंड में निवेश करें। ऐसा इसलिए कि म्यूचुअल फंड का प्रबंधन बहुत ही अच्छे तरीके से किया जाता है।


फंड मैनेजर शेयरों सबसे कम ब्रोकरेज कौन लेता है का विश्लेषण करते हैं। फंड मैनेजरों द्वारा निवेश का फैसला बहुत ही रिसर्च के बाद किया जाता है। जब फंड मैनेजर को लगता है कि कंपनी लंबी अवधि में अच्छे तरीके से प्रदर्शन करेगी और निवेश पर शानदार रिटर्न मिलेगा तभी वो निवेश करने की सलाह देते हैं।

सीधे निवेश से होता है नुकसान

अनुभव में हमने देखा है कि जो खुदरा निवेशक शेयर बाजार में सीधे निवेश करते हैं नुकसान ही उठाते हैं। आमतौर पर वे अपने पोर्टफोलियो में बहुत अधिक शेयर खरीद लेते हैं। इस चक्कर में यदि उनको कमाई होती भी है, तो वह बाजार के औसत रिटर्न से कम होती है।

ऐसा कंपनी के विषय में सही समझ नहीं होने और शेयरों की अधिक मूल्य पर खरीददारी से होता है। निवेशकों को नुकसान उठाना पड़ता है। इसके चलते कई बार निवेश की हुई पूंजी का लौटना भी मुश्किल हो जाता है।

इसके अलावा शेयरों की जल्दी खरीदारी और बिक्री पर निवेशकों को कई अतिरिक्त शुल्क चुकाने होते हैं जैसे ब्रोकरेज शुल्क। इसके चलते कई दफा मिलने वाले रिटर्न के मुकाबले शेयरों की खरीद-बिक्री पर लगने वाला शुल्क काफी ज्यादा हो जाता है।

म्यूचुअल फंड की ये हैं विशेषताएं

म्यूचुअल फंड के मामले में पहला, फंड मैनेजर सक्रिय आधार पर कम स्टॉक का मालिकाना सुनिश्चित करता है। साथ ही विभिन्न स्टॉक और सेक्टरों में जोखिम को आंकते हुए एक विविध पोर्टफोलियो बनाता है।

दूसरा, फंड मैनेजर कंपनियों के व्यावसायिक मॉडल और मूल्यांकन के बारे में गंभीरता से और लगातार पता करता रहता है। इसके बाद ही वह निर्णय लेता है कि कौन-सी कंपनी में निवेश को बनाए रखना और किस से निकलना है।

तीसरा, म्यूचुअल फंड में कम लागत के साथ बेहतर रिटर्न मिलता है।

चौथा, म्यूचुअल फंड मार्ग के माध्यम से निवेश करने के कुछ अन्य लाभ सबसे कम ब्रोकरेज कौन लेता है भी हैं। ये लाभ हैं कर की बचत, कम लागत और पारदर्शी निवेश। सेबी द्वारा इसे विनियमित करने से हमेशा निवेशकों के हितों का खास ख्याल रखा जाता है।

अखिल चतुर्वेदी, कार्यकारी उपाध्यक्ष, हेड, सेल्स एंड डिस्ट्रीब्यूशन, मोतीलाल ओसवाल एएमसी

LIC IPO: पॉलिसीधारकों को यदि एलआईसी के शेयर्स चाहिए, तो जानना जरूरी हैं कुछ बातें

देश की सबसे बड़ी बीमा कंपनी एलआईसी (LIC) के इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग यानी आईपीओ (IPO) के लॉन्च होने की खबर के साथ ही पॉलिसीहोल्डर्स (Policyholders) की इस आईपीओ में दिलचस्पी बढ़ने लगी थी. आइए जानते हैं पॉलिसीहोल्डर्स के लिए किन बातों का जानना जरूरी है.

होम -> इकोनॉमी

देश की सबसे बड़ी बीमा कंपनी एलआईसी (LIC) के इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग यानी आईपीओ (IPO) के लॉन्च होने की खबर के साथ ही पॉलिसीहोल्डर्स (Policyholders) सबसे कम ब्रोकरेज कौन लेता है की इस आईपीओ में दिलचस्पी बढ़ने लगी थी. वहीं, एलआईसी आईपीओ के अपडेटेड ड्राफ्ट को बाजार नियामक सेबी से मंजूरी मिलने के बाद साफ हो चुका है कि इसका इश्यू 4 मई से लेकर 9 मई तक आम निवेशकों (जिनमें पॉलिसीहोल्डर्स भी शामिल हैं) के लिए खुला रहेगा. इस स्थिति में एक एलआईसी पॉलिसीहोल्डर के तौर पर एलआईसी आईपीओ को लेकर लोगों के मन में कई सवाल आना लाजिमी हैं. आइए जानते हैं कि एलआईसी आईपीओ से जुड़ी जानकारियों में पॉलिसीहोल्डर्स के किन सवालों के जवाब मिले हैं.

LIC Policyholder LIC IPO

एलआईसी आईपीओ के जरिये बेचे जा रहे 21.13 करोड़ में पॉलिसीहोल्डर्स को भी आरक्षण मिलेगा.

क्या है LIC IPO?

केंद्र सरकार ने भारतीय जीवन बीमा निगम यानी एलआईसी के अपने 5 फीसदी शेयर बेचने का फैसला किया था. केंद्र सरकार की ये हिस्सेदारी कंपनी के 31.6 करोड़ शेयर के रूप में थी. लेकिन, अब अपडेटेड ड्राफ्ट में केंद्र सरकार ने 3.5 फीसदी हिस्सेदारी ही बेचने का निर्णय लिया है. तो, एलआईसी आईपीओ के जरिये 22.13 करोड़ शेयर बेचे जाएंगे. आसान शब्दों में कहा जाए, तो एलआईसी आईपीओ के जरिये पॉलिसीहोल्डर्स और निवेशक भारतीय जीवन बीमा निगम के 3.5 फीसदी शेयर के मालिक बन जाएंगे.

पॉलिसीहोल्डर हैं, तो क्या शेयर के आवंटन में आरक्षण मिलेगा?

भारतीय जीवन बीमा निगम की ओर से दी गई जानकारी में कहा गया है कि एलआईसी आईपीओ के जरिये बेचे जा रहे 21.13 करोड़ में पॉलिसीहोल्डर्स को भी आरक्षण मिलेगा. कंपनी ने 5.92 करोड़ शेयर एंकर निवेशकों, 15.8 लाख शेयर कर्मचारियों और 2.21 करोड़ शेयर को पॉलिसीहोल्डर्स के लिए आरक्षित किया है. एलआईसी आईपीओ के एक लॉट में 15 शेयर होंगे. और, इसका प्राइस बैंड 902 से 949 रुपये प्रति शेयर रहेगा. कोई भी पॉलिसीहोल्डर 2 लाख रुपये से ज्यादा के शेयर पाने के लिए अप्लाई नहीं कर सकता है.

वैसे, पॉलिसीहोल्डर्स रिटेल निवेशक के तौर पर भी एलआईसी आईपीओ खरीद सकते सबसे कम ब्रोकरेज कौन लेता है हैं. लेकिन, इस स्थिति में उनके लिए पॉलिसीहोल्डर के तहत मिलने वाला कोटा लागू नहीं होगा. आसान शब्दों में कहा जाए, तो एलआईसी के पॉलिसीहोल्डर्स को कंपनी 22.13 करोड़ शेयर्स में से 10 फीसदी शेयर का आरक्षण दिया गया है. जो लोग एलआईसी पॉलिसीहोल्डर्स होंगे, वो इस पॉलिसीहोल्डर कोटे के तहत इन शेयर्स के लिए अप्लाई कर सकेंगे. पॉलिसीहोल्डर्स को प्रति शेयर 60 रुपये की छूट भी दी जाएगी. हालांकि, केवल पॉलिसीहोल्डर होने भर से एलआईसी के आईपीओ नहीं खरीदे जा सकते हैं.

LIC IPO से शेयर्स पाने के लिए किन बातों की जरूरत सबसे कम ब्रोकरेज कौन लेता है है?

एलआईसी आईपीओ में पॉलिसीहोल्डर कोटे के तहत कंपनी के शेयर्स पाने के लिए पॉलिसीहोल्डर्स का डीमैट अकाउंट होना भी जरूरी है. इतना ही नहीं, जिस नाम से पॉलिसी है, उसी नाम से डीमैट अकाउंट होना जरूरी है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो डीमैट अकाउंट पॉलिसीहोल्डर के नाम का ही होना चाहिए. अगर कोई पॉलिसीहोल्डर अपनी पत्नी या पति या अन्य रिश्तेदारों के डीमैट अकाउंट का सहारा लेकर एलआईसी आईपीओ की खरीद करना चाहेगा. तो, ऐसा करना संभव नहीं होगा.

क्या है डीमैट अकाउंट, कैसे करता है काम?

शेयर बाजार में ट्रेडिंग करने यानी शेयर्स खरीदने और बेचने के लिए डीमैट अकाउंट की जरूरत होती है. डीमैट अकाउंट एक आम बैंक खाते की तरह ही काम करता है. बस यहां रुपयों की जगह शेयर का ट्रांजेक्शन किया जाता है. डीमैट अकाउंट एक जीरो बैलेंस अकाउंट होता है, जिसमें मिनिमम बैलेंस रखने की जरूरत नहीं होती है. वैसे, डीमैट अकाउंट में पेशेवर निवेशक शेयर के अलावा म्यूचुअल फंड यूनिट, डिबेंचर, बॉन्ड और सरकारी सिक्‍युरिटीज भी रखते हैं. भारत में NSDL और CDSL डीमैट खाता खोलने का काम करती हैं. इन डिपॉजिटरीज से जुड़ी ICICI, AXIS, HDFC जैसी ब्रोकरेज फर्म के जरिये आसानी से डीमैट अकाउंट खुलवाया जा सकता हैं. डीमैट अकाउंट खोलने के लिए पॉलिसीहोल्डर की उम्र 18 साल से ज्यादा होनी चाहिए.ब्रोकरेज फर्म की ओर से KYC प्रोसेस सबसे कम ब्रोकरेज कौन लेता है पूरा होने के बाद डीमैट अकाउंट नंबर और क्लाइंट आईडी जारी कर दी जाती है.

LIC IPO के परफॉर्मेंस को लेकर क्या उम्मीद जता रहे हैं जानकार?

एलआईसी आईपीओ के परफॉर्मेंस को लेकर जानकारों का मानना है कि इसके इश्यू होते ही निवेशकों में होड़ मचना तय है. क्योंकि, एलआईसी भारत की सबसे बड़ी बीमा कंपनी है. जिसका भारत के इंश्योरेंस सेक्टर की करीब दो-तिहाई मार्केट पर कब्जा है. आमतौर पर निवेशक ऐसे शेयर्स में लॉन्ग टर्म निवेश से मिलने वाले फायदे को ध्यान में रखते हुए इनमें अपनी रुचि दिखाते हैं. एलआईसी आईपीओ को खरीदने के लिए जानकार तर्क दे रहे हैं कि भारत में एलआईसी के इंश्योरेंस प्रीमियम की कुल वैल्यू से जीडीपी का अनुपात 3.7 फीसदी है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो भारत में अधिकांश लोगों के पास अभी भी इंश्योरेंस पॉलिसी नही हैं. जो आने वाले समय में और बढ़ेगी. कोरोना महामारी के दौरान लोगों को काफी हद तक इंश्योरेंस की जरूरत समझ में आ चुकी है.

जानकारों का मानना है कि एलआईसी बहुत जल्द लिस्टिंग के जरिये एसएंडपी, बीएसई, सेंसेक्स और निफ्टी50 में शामिल हो सकती है. इसका सीधा सा मतलब यही होगा कि किसी अन्य लार्ज-कैप कंपनी को एलआईसी अपने रास्ते से हटाएगी. और, ऐसे समय में बड़े निवेशक अपने पोर्टफोलियो में बदलाव करते हुए एलआईसी के साथ जुड़ सकते हैं. जानकारों का ये भी मानना है कि एलआईसी द्वारा हर तिमाही पर जारी किए जाने वाले आंकड़ों के जरिये निवेशकों को आईपीओ को लेकर बदलाव करने का भी मौका मिलेगा. जो एक अच्छा मौका माना जा सकता है. वहीं, कुछ जानकारों का ये भी कहना है कि पॉलिसीहोल्डर्स को एलआईसी आईपीओ में निवेश से पहले उसकी लिस्टिंग का इंतजार कर लेना चाहिए. और, लिस्टिंग के बाद ही निवेश के बारे में सोचना चाहिए.

सबसे कम ब्रोकरेज कौन लेता है

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