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आधारभूत विश्लेषण साधन के प्रकार क्या हैं?

आधारभूत विश्लेषण साधन के प्रकार क्या हैं?
शक्ति की परिभाषा और उसके विश्लेषण का प्रयास | Original Article Naresh Kumar*, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research

प्रश्न 8. न्याय की परिभाषा दीजिए। न्याय के विभिन्न रूपों की विवेचना कीजिए।
अथवा " न्याय से आप क्या समझते हैं ? न्याय के विभिन्न आयामों की विवेचना कीजिए।

उत्तर - आज की संगठित व्यवस्था का आधार कानून है और कानून का उद्देश्य न्याय की स्थापना है। न्याय के बिना कानून की कल्पना नहीं की जा सकती। लॉर्ड ब्राइस के अनुसार , “ यदि राज्य में न्याय का दीपक बुझ जाए तो अँधेरा कितना घना होगा , इसकी कल्पना नहीं कर सकते।

न्याय का अर्थ एवं परिभाषाएँ

' न्याय ' शब्द का अंग्रेजी अनुवाद है Justice' 'Justice' शब्द लैटिन भाषा के Jus' से बना है , जिसका अर्थ है- ' बाँधना ' या ' जोड़ना ' । इस प्रकार न्याय का व्यवस्था से स्वाभाविक सम्बन्ध है । अत: हम कह सकते हैं कि न्याय उस व्यवस्था का नाम है जो व्यक्तियों , समुदायों तथा समूहों को एक सूत्र में बाँधती है। किसी व्यवस्था को बनाए रखना ही न्याय है , क्योंकि कोई भी व्यवस्था किन्हीं तत्त्वों को एक-दूसरे के साथ जोड़ने के बाद ही बनती अथवा पनपती है।

· मेरियम के अनुसार , " न्याय उन मान्यताओं तथा प्रक्रियाओं का योग है जिनके माध्यम से प्रत्येक व्यक्ति को वे सभी अधिकार तथा सुविधाएँ प्राप्त होती हैं जिन्हें समाज उचित मानता है।"

· मिल के अनुसार , " न्याय उन नैतिक नियमों का नाम है जो मानव-कल्याण की धारणाओं से सम्बन्धित है तथा इसलिए जीवन के पथ-प्रदर्शन के लिए किसी भी नियम से अधिक महत्त्वपूर्ण है।"

· रफल के शब्दों में , " न्याय उस व्यवस्था का नाम है जिसके द्वारा व्यक्तिगत अधिकार की रक्षा होती है और समाज की मर्यादा भी बनी रहती है।"

न्याय की परिभाषा

· बेन तथा पीटर्स के अनुसार , " न्याय का अर्थ यह है कि जब तक भेदभाव किए जाने का कोई उचित कारण न हो , तब तक सभी व्यक्तियों से एक जैसा व्यवहार किया जाये ।

उपर्युक्त परिभाषाओं से यह स्पष्ट है कि न्याय का सिद्धान्त अपने स्वरूप में | समाज के अन्तर्गत होता है। हम न्याय की संकल्पना को समाज से बाहर , उससे अलग तथा उससे दूर सोच भी नहीं सकते । न्याय के अर्थ को सत्य , नैतिकता तथा शोषण विहीनता की स्थिति में ही पाया जा सकता है । इसके अर्थ का एक पहलू लोगों | के बीच व्यवस्था की स्थापना पर जोर देता है , तो दूसरा पहलू अधिकारों व कर्तव्यों को बनाने का यत्न करता है । निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि न्याय के अर्थ में दायित्व , सुविधाएँ , अधिकार , व्यवस्था , नैतिकता , न्याय की भावना , सत्य , उचित व्यवहार आदि तत्त्व समाहित होते हैं।

· न्याय की धारणा के विभिन्न रूप (आयाम)

(1) नैतिक न्याय -

परम्परागत रूप में न्याय की धारणा को नैतिक रूप में ही अपनाया जाता रहा है । नैतिक न्याय इस धारणा पर आधारित है कि विश्व में कुछ सर्वव्यापक , अपरिवर्तनीय तथा अन्तिम प्राकृतिक नियम हैं , जो कि व्यक्तियों के आपसी सम्बन्धों को ठीक प्रकार से संचालित करते हैं। इन प्राकृतिक नियमों और | प्राकृतिक अधिकारों पर आधारित जीवन व्यतीत करना ही नैतिक न्याय है। जब हमारा आचरण इन नियमों के अनुसार आधारभूत विश्लेषण साधन के प्रकार क्या हैं? होता है , तब वह नैतिक न्याय की अवस्था होती है। जब हमारा आचरण इसके विपरीत होता है , तब वह नैतिक न्याय के विरुद्ध होता है।

( 2) कानूनी न्याय -

राज्य के उद्देश्य में न्याय को बहुत अधिक महत्त्व दिया गया और कानूनी भाषा में समस्त कानूनी व्यवस्था को न्याय व्यवस्था कहा जाता है । कानूनी न्याय में वे सभी नियम और कानूनी व्यवहार सम्मिलित हैं जिनका अनुसरण किया जाना चाहिए ।

· इस प्रकार कानूनी न्याय की धारणा दो अर्थों में प्रयोग की जाती है-

( ii) कानून को लागू करना अर्थात् बनाए गए कानूनों को न्यायोचित ढंग से लागू किया जाना चाहिए। कानूनों को न्यायोचित ढंग से लागू करने का आशय यह है कि जिन व्यक्तियों ने कानून का उल्लंघन किया है , उन्हें दण्डित करने में किसी भी प्रकार का पक्षपात नहीं किया जाना चाहिए।

(3) राजनीतिक न्याय -

राज व्यवस्था का प्रभाव समाज के सभी व्यक्तियों पर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में पड़ता ही है । अतः सभी व्यक्तियों को ऐसे अवसर प्राप्त होने चाहिए कि वे लगभग समान रूप से राज व्यवस्था को प्रभावित कर सकें और राजनीतिक शक्तियों का प्रयोग इस ढंग से किया जाना चाहिए कि सभी व्यक्तियों को लाभ प्राप्त हो । यही राजनीतिक न्याय है और इसकी प्राप्ति स्वाभाविक रूप से एक प्रजातान्त्रिक व्यवस्था के अन्तर्गत ही की जा सकती है। ' प्रजातान्त्रिक व्यवस्था के साथ-साथ राजनीतिक न्याय की प्राप्ति के कुछ अन्य साधन हैं — वयस्क मताधिकार ; सभी व्यक्तियों के लिए विचार , भाषण , सम्मेलन और संगठन आदि की नागरिक स्वतन्त्रताएँ ; प्रेस की स्वतन्त्रता ; न्यायपालिका की स्वतन्त्रता ; बिना किसी भेदभाव के सभी व्यक्तियों को सार्वजनिक पद प्राप्त होना आदि । राजनीतिक न्याय की धारणा में यह बात निहित है कि राजनीति में कोई कुलीन वर्ग अथवा विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग नहीं होगा।

(4) सामाजिक न्याय -

सामाजिक न्याय का आशय यह है कि नागरिक-नागरिक के बीच में सामाजिक स्थिति के आधार पर किसी प्रकार का भेद न माना जाए और प्रत्येक व्यक्ति को आत्म-विकास के पूर्ण अवसर प्राप्त हों। सामाजिक न्याय की धारणा में यह बात निहित है कि अच्छे जीवन के लिए व्यक्ति को आवश्यक परिस्थितियाँ प्राप्त होनी चाहिए और इस सन्दर्भ में समाज की राजनीतिक सत्ता से यह आशा की जाती है कि वह अपने विधायी तथा प्रशासनिक कार्यक्रमों द्वारा एक ऐसे समाज की स्थापना करेगा जो समानता पर आधारित हो । वर्तमान समय में सामाजिक न्याय का विचार बहुत अधिक लोकप्रिय है।

(5) आर्थिक न्याय -

आर्थिक न्याय सामाजिक न्याय का एक अंग है। कुछ लोग आर्थिक न्याय का तात्पर्य पूर्ण आर्थिक समानता से लेते हैं। किन्तु वास्तव में इस प्रकार की स्थिति व्यवहार के अन्तर्गत किसी भी रूप में सम्भव नहीं है। आर्थिक न्याय का तात्पर्य यह है कि सम्पत्ति सम्बन्धी भेद इतना अधिक नहीं होना चाहिए कि धन-सम्पदा के आधार पर व्यक्ति-व्यक्ति के बीच विभेद की कोई दीवार खडी हो जाए और कुछ धनी व्यक्तियों द्वारा अन्य व्यक्तियों के श्रम का शोषण किया जाए या उसके जीवन पर अनुचित अधिकार स्थापित कर लिया जाए। उसमें यह बात भी निहित है कि पहले समाज में सभी व्यक्तियों की अनिवार्य आवश्यकताएं पूरी होनी चाहिए , उसके बाद ही किन्हीं व्यक्तियों द्वारा आरामदायक आवश्यकताओं या विलासिता की आवश्यकताओं को पूरा किया जा सकता है । आधारभूत विश्लेषण साधन के प्रकार क्या हैं? आर्थिक न्याय के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए व्यक्तिगत सम्पत्ति के अधिकार को सीमित किया जाना आवश्यक है।

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प्रश्न 7 ( click here ) प्रश्न 7. लोक-कल्याणकारी राज्य की अवधारणा स्पष्ट कीजिए तथा इसके प्रमुख कार्यों का उल्लेख कीजिए।

आधारभूत विश्लेषण साधन के प्रकार क्या हैं?

Year: Jan, 2019
Volume: 16 / Issue: 1
Pages: 489 - 491 (3)
Publisher: Ignited Minds Journals
Source:
E-ISSN: 2230-7540
DOI:
Published URL: http://ignited.in/I/a/78898
Published On: Jan, 2019

Article Details

शक्ति की परिभाषा और उसके विश्लेषण का प्रयास | Original Article

Naresh Kumar*, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research

आर्थिक भूगोल/परिचय

आर्थिक भूगोल, मानव भूगोल की एक प्रमुख शाखा हैं [१] जिसमें भूतल पर मानवीय आर्थिक क्रियाओं,जैसे एक स्थान से दूसरे स्थान पर पायी जाने वाली विभिन्नता का अध्ययन किया जाता है। इसके अंतर्गत विभिन्न प्रकार की आर्थिक क्रियाओं के वितरण प्रतिरूपों तथा उन कारकों एवं प्रक्रमों का अध्ययन किया जाता है जो भूतल पर इन प्रतिरूपों के क्षेत्रीय विभेदशीलता को प्रभावित करते हैं। आर्थिक भूगोल में मृदा, जल, जैव तत्त्व, खनिज, ऊर्जा आदि प्राकृतिक संसाधनों, आखेट, मत्स्य पालन,पशुपालन, वनोद्योग, कृषि, विनिर्माण उद्योग, परिवहन,संचार, व्यापार, वाणिज्य,आदि आर्थिक क्रियाओं तथा अन्य आर्थिक पक्षों एवं संगठनों के अध्ययनों को सम्मिलित करते है। [२] प्रारंभ में आर्थिक भूगोल को पहले मानव भूगोल एवं बाद में सामाजिक भूगोल की मुख्य शाखा माना गया था, परंतु वर्तमान में आर्थिक भूगोल स्वयं भूगोल की एक महत्वपूर्ण शाखा बन गई है। आर्थिक भूगोल हमें ऐसे प्राकृतिक संसाधनों की स्थिति, प्राप्ति और वितरण आदि से परिचित कराता है जिनके द्वारा वर्तमान में किसी देश की आर्थिक उन्नति हो सकती है। इसके द्वारा ही हमें पता चलता है कि किसी देश में पाई जाने वाली प्राकृतिक संपत्ति का किस विधि द्वारा, कहां पर और किस कार्य के लिए उपयोग किया जा सकता है। भूगोल किसी राष्ट्र की संपूर्ण अर्थव्यवस्था को निर्धारित कर सकता है। यदि कोई व्यक्ति एक पर्वत श्रृंखला के साथ काम कर रहा है, तो परिवहन उसके लिए उतना कठिन हो सकता है जितना कि सोच नहीं सकता है। हालाँकि एक ही परिस्थिति में देश के धन को जोड़ने के लिए मूल्यवान खनिज उपलब्ध हो सकते हैं। नदियों को महंगे पुलों की आवश्यकता हो सकती है, लेकिन वे सस्ते परिवहन और बिजली उत्पादन कर सकते हैं। उत्तरी अमेरिका के मध्य को कभी ग्रेट अमेरिकन मरूस्थल कहा जाता था क्योंकि इसमें पेड़ों की कमी थी एवं इसमें खेती करना बहुत ही मुश्किल था। प्रेयरी घासें लगभग छह फीट ऊंची थी, लेकिन भूमि में उपजापन थी । परन्तु लोहे के हल के आविष्कार के साथ, यह भूमि बंजर से लाभदायक हो गई थी। इस प्रकार, अंतिम विश्लेषण में किसी राष्ट्र का अधिकांश अर्थशास्त्र कम से कम कुछ हद तक उसके भूगोल पर निर्भर है। आर्थिक भूगोल के अन्तर्गत उसके कार्य-क्षेत्र, मानव के प्राथमिक एवं गौण व्यवसाय तथा क्रियाएं (शिकार करना, वस्तुएं एकत्रित करना, लकड़ी काटना, मछली पकड़ना, पशुपालन, कृषि करने एवं खनन करने, आदि), विश्व के औद्योगिक प्रदेश एवं उनके प्रमुख उद्योग (लोहा-इस्पात, वस्त्र, आदि), परिवहन के साधन, पत्तन एवं नगरों का विकास तथा व्यापार, आदि का विस्तृत विवेचन किया गया है।
आर्थिक भूगोल का अध्ययन इस बात की ओर संकेत करता है कि किस स्थान पर कौन सा विशेष उद्योग स्थापित किया जा सकता है। इसके अध्ययन से यह ज्ञात हो सकता है कि विशेष जलवायु के अनुसार किसी देश की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कच्चा माल, भोज्य पदार्थ अथवा यंत्र आदि कहां से प्राप्त किए जा सकते हैं। आर्थिक भूगोल के अध्ययन से इन बातों का भी ज्ञान हो सकता है

  • विश्व के विभिन्न भागों में मानव समुदाय किस प्रकार अपने भौतिक आवश्यकताएं पूरी करता है
  • उसका रहन सहन खान पान वेशभूषा एवं अन्य सामाजिक परंपराएं आदि कैसी है।
  • उसने जीवन स्तर ऊंचा उठाने के लिए प्राकृतिक संसाधनों का किस प्रकार उपयोग किया है।
  • किसी विशेष देश ने किस प्रकार अधिक व्यवस्थित एवं निरंतर आर्थिक उन्नति प्राप्त की है।
  • कोई अन्य देश इतना क्यों पिछड़ा है और किसी की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी क्यों है।

किसी भी देश की उन्नति वहां के वैज्ञानिक, राजनीतिक, अर्थशास्त्री, भूगोलवेत्ता एवं नीति निर्धारक के सहयोग से होती है और इनका सहयोग आर्थिक भूगोल से होता है आर्थिक भूगोल के अन्तर्गत आर्थिक वस्तुओं का उत्पादन, उपभोग का स्थानीयकरण का अध्ययन किया जाता है। आरम्भ में प्रत्येक वस्तु का विश्व वितरण एवं उत्पादन का अध्ययन किया जाता था। इनका भौगोलिक पर्यावरण से सम्बन्ध तथा आर्थिक क्षेत्रों का सीमांकन करना भी इसके अध्ययन में समिलित किया जाता है।

आर्थिक भूगोल की कई अन्य उपशाखाएं भी हैं-
अ) कृषि भूगोल
ब) वाणिज्य भूगोल
स) संसाधन भूगोल
द) परिवहन भूगोल
य) विनिर्माण उद्योग
कुछ विद्वानों ने आर्थिक भूगोल की परिभाषा इस प्रकार बताई है-
"economic geography defined as the study of the influence exerted upon the economic activities of man by his physical environment."
(मनुष्य के आर्थिक क्रियाओं पर प्राकृतिक वातावरण का प्रभाव पड़ता है उसके अध्ययन को आर्थिक भूगोल का विषय माना गया है।) Nefarlane
"economic geography is that aspect of the subject which deals with the influence of the environment inorganic and organic on the economic activities of man."
(आर्थिक भूगोल वह विषय है जिसमें मनुष्य के आर्थिक क्रियाओं पर वातावरण द्वारा डाले हुए प्रभाव का अध्ययन होता है।) Rudmose Brown [३]
इन परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि अपने वातावरण से प्रभावित होकर मनुष्य जो कार्य करता है उसका अध्ययन ही आर्थिक भूगोल का विषय है इस प्रकार आर्थिक भूगोल के अध्धयन में दो बातों का वर्णन होता है-

  1. भौगोलिक वातावरण-इसके अंतर्गत विश्व की भू रचना जलवायु,प्राकृतिक वनस्पति,खनिज संपत्ती,पशुधन आदि का वर्णन होता है।
  2. मनुष्य की आर्थिक क्रियाएं- भौगोलिक वातावरण में रहता हुआ मनुष्य उससे प्रभावित होकर जीवन निर्वाह के लिए जो कार्य करता है वह इसके अंतर्गत आता है ऐसे कार्यों में खेती करना,कारखानों में काम करना,लकड़ी काटना,मछली पकड़ना आदि सम्मिलित है।

इसके अंतर्गत हम यह भी जान सकते हैं कि मनुष्य पृथ्वी पर अनेक प्रकार के क्रियाओं में संलग्न है। हम आगे के अध्याय में इस क्रियाओं के बारे में विस्तृत रूप से जानकारी प्राप्त करेंगे लेकिन उसका छोटा सा रूप इस अध्याय में भी अध्ययन कर लेते हैं । पृथ्वी पर मानव की आर्थिक क्रियाओं का क्षेत्र बहुत ही व्यापक है वर्तमान में इस समय बहुस्तरीय आर्थिक क्रियाएं सम्मिलित की जाती है।आर्थिक क्रियाएं मुख्यतः चार प्रकार से होती है।

  • प्राथमिक उत्पादन संबंधी क्रियाओं में प्रकृति से प्राप्त संसाधन का सीधा उपयोग होता है जैसे कृषि करना, खाने खोदना, मछली पकड़ना, आखेट करना, वस्तुओं का संचय करना, वन संबंधी उद्योग आदि
  • द्वितीयक उत्पादन क्रियाओं में प्रकृति से प्राप्त संसाधनों का सीधा उपयोग नहीं होता वरन् उनको साफ परिष्कृत अथवा रूप परिवर्तित करके उपयोग होता है जैसे लोहे को गला कर वस्तु बनाना, गेहूं से आटा या मैदा बनाना, कपास और ऊन से कपड़ा बनाना, लकड़ी से फर्नीचर, कागज आदि बनाना।
  • तृतीयक उत्पादन क्रिया में वस्तुओं का परिवहन, संचार और संवादवाहन, वितरण एवं संस्थाओं और व्यक्तियों की सेवाएं सम्मिलित की जाती है।

सामग्री

भूगोल विषय के कई अंग होते हैं। प्राकृतिक वातावरण का वर्णन प्राकृतिक भूगोल में किया जाता है। मानवीय क्रियाओं का वर्णन मानवीय भूगोल का विषय है इन दोनों का एक दूसरे पर क्या प्रभाव पड़ता है इसका अध्ययन आर्थिक भूगोल का विषय है। इनके अतिरिक्त भिन्न-भिन्न देशों का वर्णन राजनीतिक भूगोल का लाता है पृथ्वी का विस्तार उसकी ग्रहों एवं नक्षत्रों से दूरी आदि का अध्ययन गणित संबंधी भूगोल का विषय है भूगोल के इन दोनों अंगों का संबंध किसी न किसी प्रकार आर्थिक भूगोल से अवश्य है। [४] आर्थिक भूगोल का विषय इतना विस्तृत है कि इसका संबंध न केवल भूगोल के भिन्न-भिन्न अगों से है परंतु अन्य विषय भी इससे संबंधित है। उदाहरण के लिए लोहे के कारखाने का वर्णन करते समय यह बताया जाता है कि लोहा और कोयला कहां मिलता है यह भूगर्भ विद्या का विषय है। कृषि की उपज पढ़ते समय यह ज्ञात किया जाता है कि गेहूं और चावल भिन्न-भिन्न जलवायु में पैदा होते हैं अतः यह जलवायु विज्ञान का विषय है। विश्वत रेखा के निकट है घने वन क्यों है वहीं दूसरी ओर सहारा यूं वृक्ष क्यों नहीं है यह वनस्पति विज्ञान का विषय है।आर्थिक भूगोल में इन सभी विषयों की सहायता लेनी पड़ती है इसलिए आर्थिक भूगोल अनेक विषयों से संबंधित है।

  1. व्यक्ति किसी विशेष क्षेत्र की आर्थिक गतिविधियों के बारे में आसानी से अध्ययन कर सकता है।
  2. एक उपयुक्त क्षेत्र में आर्थिक गतिविधि स्थापित करने का सबसे अच्छा तरीका पता लगाना आसान है।
  3. एक आर्थिक गतिविधि के संदर्भ में भौगोलिक लाभों की पहचान को इसके माध्यम से आसान बनाया जा सकता है अर्थात् भारत को एशिया के किसी भी अन्य देशों की तुलना में सूर्य के प्रकाश का बड़ा लाभ प्राप्त होता है जो एक सौर ऊर्जा पैनल बनाने में मदद करता है ।

विनिर्माण उद्योग किस स्थान से अधिकतम लाभ मिले इसके लिए इसके माध्यम से सर्वेक्षण किया जा सकता है। भौगोलिक स्थिति ने उस क्षेत्र की आर्थिक गतिविधियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है जिसके माध्यम से योजना बनाई जा सकती है कि कौन सा व्यवसाय उपयुक्त है या नहीं।
यह कहा जा सकता है कि आर्थिक भूगोल अर्थशास्त्र के साथ उन्मुख है

आधारभूत विश्लेषण साधन के प्रकार क्या हैं?

Year: Jan, 2019
Volume: 16 / Issue: 1
Pages: 489 - 491 (3)
Publisher: Ignited Minds Journals
Source:
E-ISSN: 2230-7540
DOI:
Published URL: http://ignited.in/I/a/78898
Published On: Jan, 2019

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शक्ति की परिभाषा और उसके विश्लेषण का प्रयास | Original Article

Naresh Kumar*, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research

प्रश्न 8. न्याय की परिभाषा दीजिए। न्याय के विभिन्न रूपों की विवेचना कीजिए।
अथवा " न्याय से आप क्या समझते हैं ? न्याय के विभिन्न आयामों की विवेचना कीजिए।

उत्तर - आज की संगठित व्यवस्था का आधार कानून है और कानून का उद्देश्य न्याय की स्थापना है। न्याय के बिना कानून की कल्पना नहीं की जा सकती। लॉर्ड ब्राइस के अनुसार , “ यदि राज्य में न्याय का दीपक बुझ जाए तो अँधेरा कितना घना होगा , इसकी कल्पना नहीं कर सकते।

न्याय का अर्थ एवं परिभाषाएँ

' न्याय ' शब्द का अंग्रेजी अनुवाद है Justice' 'Justice' शब्द लैटिन भाषा के Jus' से बना है , जिसका अर्थ है- ' बाँधना ' या ' जोड़ना ' । इस प्रकार न्याय का व्यवस्था से स्वाभाविक सम्बन्ध है । अत: हम कह सकते हैं कि न्याय उस व्यवस्था का आधारभूत विश्लेषण साधन के प्रकार क्या हैं? नाम है जो व्यक्तियों , समुदायों तथा समूहों को एक सूत्र में बाँधती है। किसी व्यवस्था को बनाए रखना ही न्याय है , क्योंकि कोई भी व्यवस्था किन्हीं तत्त्वों को एक-दूसरे के साथ जोड़ने के बाद ही बनती अथवा पनपती है।

· मेरियम के अनुसार , " न्याय उन मान्यताओं तथा प्रक्रियाओं का योग है जिनके माध्यम से प्रत्येक व्यक्ति को वे सभी अधिकार तथा सुविधाएँ प्राप्त होती हैं जिन्हें समाज उचित मानता है।"

· मिल के अनुसार , " न्याय उन नैतिक नियमों का नाम है जो मानव-कल्याण की धारणाओं से सम्बन्धित है तथा इसलिए जीवन के पथ-प्रदर्शन के लिए किसी भी नियम से अधिक महत्त्वपूर्ण है।"

· रफल के शब्दों में , " न्याय उस व्यवस्था का नाम है जिसके द्वारा व्यक्तिगत अधिकार की रक्षा होती है और समाज की मर्यादा भी बनी रहती है।"

न्याय की परिभाषा

· बेन तथा पीटर्स के अनुसार , " न्याय का अर्थ यह है कि जब तक भेदभाव किए जाने का कोई उचित कारण न हो , तब तक सभी व्यक्तियों से एक जैसा व्यवहार किया जाये ।

उपर्युक्त परिभाषाओं से यह स्पष्ट है कि न्याय का सिद्धान्त अपने स्वरूप में | समाज के अन्तर्गत होता है। हम न्याय की संकल्पना को समाज से बाहर , उससे अलग तथा उससे दूर सोच भी नहीं सकते । न्याय के अर्थ को सत्य , नैतिकता तथा शोषण विहीनता की स्थिति में ही पाया जा सकता है । इसके अर्थ का एक पहलू लोगों | के बीच व्यवस्था की स्थापना पर जोर देता है , तो दूसरा पहलू अधिकारों व कर्तव्यों को बनाने का यत्न करता है । निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि न्याय के अर्थ में दायित्व , सुविधाएँ , अधिकार , व्यवस्था , नैतिकता , न्याय की भावना , सत्य , उचित व्यवहार आदि तत्त्व समाहित होते हैं।

· न्याय की धारणा के विभिन्न रूप (आयाम)

(1) नैतिक न्याय -

परम्परागत रूप में न्याय की धारणा को नैतिक रूप में ही अपनाया जाता रहा है । नैतिक न्याय इस धारणा पर आधारित है कि विश्व में कुछ सर्वव्यापक , अपरिवर्तनीय तथा अन्तिम प्राकृतिक नियम हैं , जो कि व्यक्तियों के आपसी सम्बन्धों को ठीक प्रकार से संचालित करते हैं। इन प्राकृतिक नियमों और | प्राकृतिक अधिकारों पर आधारित जीवन व्यतीत करना ही नैतिक न्याय है। जब हमारा आचरण इन नियमों के अनुसार होता है , तब वह नैतिक न्याय की अवस्था होती है। जब हमारा आचरण इसके विपरीत होता है , तब वह नैतिक न्याय के विरुद्ध होता है।

( 2) कानूनी न्याय -

राज्य के उद्देश्य में न्याय को बहुत अधिक महत्त्व दिया गया और कानूनी भाषा में समस्त कानूनी व्यवस्था को न्याय व्यवस्था कहा जाता है । कानूनी न्याय में वे सभी नियम और कानूनी व्यवहार सम्मिलित हैं जिनका अनुसरण किया जाना चाहिए ।

· इस प्रकार कानूनी न्याय की धारणा दो अर्थों में प्रयोग की जाती है-

( ii) कानून को लागू करना अर्थात् बनाए गए कानूनों को न्यायोचित ढंग से लागू किया जाना चाहिए। कानूनों को न्यायोचित ढंग से लागू करने का आशय यह है कि जिन व्यक्तियों ने कानून का उल्लंघन किया है , उन्हें दण्डित करने में किसी भी प्रकार का पक्षपात नहीं किया जाना चाहिए।

(3) राजनीतिक न्याय -

राज व्यवस्था का प्रभाव समाज के सभी व्यक्तियों पर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में पड़ता ही है । अतः सभी व्यक्तियों को ऐसे अवसर प्राप्त होने चाहिए कि वे लगभग समान रूप से राज व्यवस्था को प्रभावित कर सकें और राजनीतिक शक्तियों का प्रयोग इस ढंग से किया जाना चाहिए कि सभी व्यक्तियों को लाभ प्राप्त हो । यही राजनीतिक न्याय है और इसकी प्राप्ति स्वाभाविक रूप से एक प्रजातान्त्रिक व्यवस्था के अन्तर्गत ही की जा सकती है। ' प्रजातान्त्रिक व्यवस्था के साथ-साथ राजनीतिक न्याय की प्राप्ति के कुछ अन्य साधन हैं — वयस्क मताधिकार ; सभी व्यक्तियों के लिए विचार , भाषण , सम्मेलन और संगठन आदि की नागरिक स्वतन्त्रताएँ ; प्रेस की स्वतन्त्रता ; न्यायपालिका की स्वतन्त्रता ; बिना किसी भेदभाव के सभी व्यक्तियों को सार्वजनिक पद प्राप्त होना आदि । राजनीतिक न्याय की धारणा में यह बात निहित है कि राजनीति में कोई कुलीन वर्ग अथवा विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग नहीं होगा।

(4) सामाजिक न्याय -

सामाजिक न्याय का आशय यह है कि नागरिक-नागरिक के बीच में सामाजिक स्थिति के आधार पर किसी प्रकार का भेद न माना जाए और प्रत्येक व्यक्ति को आत्म-विकास के पूर्ण अवसर प्राप्त हों। सामाजिक न्याय की धारणा में यह बात निहित है कि अच्छे जीवन के लिए व्यक्ति को आवश्यक परिस्थितियाँ प्राप्त होनी चाहिए और इस सन्दर्भ में समाज की राजनीतिक सत्ता से यह आशा की जाती है कि वह अपने विधायी तथा प्रशासनिक कार्यक्रमों द्वारा एक ऐसे समाज की स्थापना करेगा जो समानता पर आधारित हो । वर्तमान समय में सामाजिक न्याय का विचार बहुत अधिक लोकप्रिय है।

(5) आर्थिक न्याय -

आर्थिक न्याय सामाजिक न्याय का एक अंग है। कुछ लोग आर्थिक न्याय का तात्पर्य पूर्ण आर्थिक समानता से लेते हैं। किन्तु वास्तव में इस प्रकार की स्थिति व्यवहार के अन्तर्गत किसी भी रूप में सम्भव नहीं है। आर्थिक न्याय का तात्पर्य यह है कि सम्पत्ति सम्बन्धी भेद इतना अधिक नहीं होना चाहिए कि धन-सम्पदा के आधार पर व्यक्ति-व्यक्ति के बीच विभेद की कोई दीवार खडी हो जाए और कुछ धनी व्यक्तियों द्वारा अन्य व्यक्तियों के श्रम का शोषण किया जाए या उसके जीवन पर अनुचित अधिकार स्थापित कर लिया जाए। उसमें यह बात भी निहित है कि पहले समाज में सभी व्यक्तियों की अनिवार्य आवश्यकताएं पूरी होनी चाहिए , उसके बाद ही किन्हीं व्यक्तियों द्वारा आरामदायक आवश्यकताओं या विलासिता की आवश्यकताओं को पूरा किया जा सकता है । आर्थिक न्याय के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए व्यक्तिगत सम्पत्ति के अधिकार को सीमित किया जाना आवश्यक है।

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