विदेशी बाजार में निवेश करते समय देश

भारत में म्यूचुअल फंड में निवेश कैसे करें?
म्यूचुअल फंड उद्योग एक प्रकार का निवेश विदेशी बाजार में निवेश करते समय देश वाहन है जो कई निवेशकों से स्टॉक, बॉन्ड, मनी मार्केट इंस्ट्रूमेंट आदि जैसी प्रतिभूतियों में निवेश करने के लिए धन एकत्र करता है। पेशेवर मनी मैनेजर म्यूचुअल फंड का प्रबंधन करते हैं, संपत्ति आवंटित करते हैं और निवेशकों के लिए पूंजीगत लाभ का उत्पादन करने का प्रयास करते हैं। म्यूचुअल फंड पोर्टफोलियो संरचित और उनके प्रॉस्पेक्टस में उल्लिखित निवेश उद्देश्यों से मेल खाने के लिए प्रबंधित होते हैं। व्यक्ति और छोटे व्यवसाय म्यूचुअल फंड में निवेश कर सकते हैं, जो उन्हें स्टॉक, बॉन्ड आदि के पेशेवर रूप से प्रबंधित पोर्टफोलियो तक पहुंच प्रदान करते हैं। शेयरधारक फंड के लाभ या हानि को आनुपातिक रूप से साझा करते हैं। आम तौर पर, म्यूचुअल फंड का प्रदर्शन फंड के कुल मार्केट कैप में बदलाव पर आधारित होता है, जो फंड के अंतर्निहित निवेश के प्रदर्शन को जोड़कर प्राप्त किया जाता है।
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आपको विदेशी शेयरों में भी निवेश के बारे में क्यों सोचना चाहिए?
अगर दुनिया के एक हिस्से में शेयर बाजार अच्छा नहीं कर रहे हैं तो जरूरी नहीं कि दूसरे में भी यही बात लागू हो.
इसके अलावा सितंबर 2004 में 100 डॉलर की कीमत करीब 4,600 रुपये थी. आज 100 डॉलर की कीमत करीब 6,800 रुपये हो चुकी है. कारण है कि तब एक डॉलर की कीमत करीब 46 रुपये थी. आज यह बढ़कर 68 रुपये हो गर्इ है. इस तरह आपको कुल 30 गुने का मुनाफा होता.
लेकिन, सच यह है कि शायद ही कोर्इ भारतीय हो जिसने ऐसा किया हो. इन सालों में भारतीय शेयर बाजारों ने दूसरे विदेशी बाजारों की तुलना में अच्छा किया है. यही कारण है कि भारतीयों ने अपने बाजारों से बाहर निकलकर नहीं देखा.
विदेशी शेयरों में निवेश करके विविधता हासिल की जा सकती है. निवेश में विविधता का अलग ही स्थान है. अलग-अलग तरह के निवेश विकल्पों में पैसा लगाने के पीछे एक ही कारण होता है. अमूमन सभी के सभी निवेश एक साथ नीचे नहीं जाते हैं. इस तरह निवेश का मूल्य एक साथ नहीं घटता है. एक की भरपार्इ दूसरा तो दूसरे की भरपार्इ पहला करता है.
अगर दुनिया के एक हिस्से में शेयर बाजार अच्छा नहीं कर रहे हैं तो जरूरी नहीं कि दूसरे में भी यही बात लागू हो. यही बात आपके निवेश के मूल्य को घटने नहीं देती है. इस तरह आपके निवेश को जरूरी सुरक्षा मिलती है.
भारतीय शेयर बाजारों ने बीते कर्इ दशकों से शानदार प्रदर्शन किया है. शायद यही वजह है कि भारतीयों ने दुनिया के दूसरे बाजारों में अवसर तलाशने की कोशिश नहीं की.
2007-08 में वित्तीय संकट आया. इस दौरान घरेलू बाजार टूटे तो जरूर, लेकिन यह गिरावट अंतरराष्ट्रीय बाजारों की तुलना में सीमित रही. सच तो यह है कि अमेरिका के कारण इस वित्तीय संकट ने इतना विकराल रूप धारण किया. पर, इससे एक बात साफ है कि जब पूरी दुनिया में संकट हो तो कर्इ ऐसे देश होते हैं जो खेवनहार बनते हैं. भारत की भूमिका इसमें वही थी.
2003 से लेकर 2008 तक जहां विदेशी बाजार संकटों से जूझते रहे. भारत में अपेक्षाकृत इसका कम असर हुआ. अलबत्ता इसी दौर में भारतीय बाजारों ने शानदार दौड़ भी लगार्इ.
हालांकि, अब विविधता के लिए विदेश में पैसे लगाने का कारण बनता है. सच तो यह है कि वित्तीय संकट के तुरंत बाद ही भारतीय निवेशकों को विदेशी बाजारों में दस्तक दे देनी चाहिए थी. 2007 से 2013 के अंत तक बीएसर्इ ने 4 फीसदी रिटर्न दिया है. इसके उलट अमेरिकी बाजार में रुपये में निवेश इस समय में दोगुना हो चुका होता.
अगर इक्विटी आपके लॉन्ग-टर्म निवेश का हिस्सा है तो इसका कुछ भाग अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी लगाया जाना चाहिए. यह 10 से 20 फीसदी हो सकता है. इसके लिए कर्इ भारतीय म्यूचुअल फंड और ब्रोकर हैं. इन्हें विदेशी शेयरों में निवेश करने की महारत हासिल है. खुद से भी विदेशी शेयरों में पैसा लगाया जा सकता है.
लेखक वैल्यू रिसर्च के सीर्इओ हैं.
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भारत में बढ़ रहा चीन का FPI, चीन शीर्ष 10 देशों में शुमार होने के करीब
नई दिल्लीः भारत में विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (एफपीआई) के लिहाज से चीन शीर्ष 10 देशों में शुमार होने के करीब है। सूचना के अधिकार (आरटीआई) कानून के तहत बाजार नियामक सेबी से मिली जानकारी के मुताबिक भारत में चीन का विदेशी पोर्टफोलियो निवेश लगातार बढ़ रहा है। वैश्विक महामारी की शुरुआत से अभी तक के तिमाही आंकड़े बताते हैं कि 2020 के शुरुआती दिनों में जब प्रतिबंधों पर बात चल रही थी तभी से चीन से एफपीआई बढ़ रहा था।
उसके बाद से ही यह बढ़ता जा रहा है। सेबी से मिले आंकड़ों के मुताबिक चीन का एफपीआई निवेश जून 2022 में 80,684 करोड़ रुपए हो गया। यह दसवें सबसे बड़े एफपीआई देश (नीदरलैंड) के निवेश से करीब 20,000 करोड़ रुपए ही कम है। उसी दौरान नीदरलैंड का भारत में एफपीआई निवेश 99,140 करोड़ रुपए था।
सरकार ने अप्रैल 2020 में एक अधिसूचना जारी कर भारत के सीमावर्ती देशों की कंपनियों द्वारा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश पर प्रतिबंध लगा दिया था। चीन के साथ भू-राजनीतिक तनाव के मद्देनजर यह कदम उठाया गया था और उसके बाद एफपीआई निवेश पर निगरानी भी कथित तौर पर बढ़ गई थी। ऐसा केवल बाजार में तेजी के कारण नहीं हुआ है क्योंकि एफपीआई संपत्तियों में चीन की हिस्सेदारी भी बढ़ रही है। दिसंबर 2019 में कुल एफपीआई परिसंपत्तियों में चीन की हिस्सेदारी करीब 1.4 फीसदी थी, जो बढ़कर जून 2022 में 1.8 फीसदी हो गई।
विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों की मदद करने वाले एक विशेषज्ञ ने कहा कि कई बड़े देश कर अथवा अनुपालन संबंधी कारणों से दूसरे देशों के रास्ते निवेश करते हैं। इसका मतलब साफ विदेशी बाजार में निवेश करते समय देश है कि चीन से सीधे आने वाला एफपीआई निवेश एकमात्र स्रोत नहीं है बल्कि चीन की कंपनियां अन्य देशों के विदेशी बाजार में निवेश करते समय देश जरिये भी भारत में निवेश कर रही हैं। उन्होंने बताया कि केमैन आईलैंड्स और हॉन्ग कॉन्ग के जरिए भी एफपीआई चीन रकम का निवेश कर रहे हैं।
बाजार नियामक ने एक आरटीआई के जवाब में कहा कि चीन के एफपीआई की कुल संख्या दिसंबर 2019 से 16 ही बनी हुई है। दिसंबर 2019 के बाद पंजीकृत एफपीआई की कुल संख्या में 1,895 (करीब 14.6 फीसदी) की वृद्धि हुई है। डिपॉजिटरी के आंकड़ों के अनुसार पंजीकृत एफपीआई की कुल संख्या फिलहाल 10,895 है। प्राप्त जानकारी के विश्लेषण से चीन के सभी 16 एफपीआई के नाम का खुलासा होता है। उनमें 15 एफपीआई श्रेणी 1 में आते हैं। एफपीआई की इस श्रेणी में विदेशी सरकार की इकाइयां अथवा बहुराष्ट्रीय एजेंसियां शामिल हैं।
इसमें चीन के नेतृत्व वाले एशियन इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक की शाखा बेस्ट इन्वेस्टमेंट कॉरपोरेशन एवं सात संबंधित कंपनियां, चाइना एएमसी ग्लोबल सेलेक्टिव इक्विटीज फंड, सीआईएफएम एशिया पैसिफिक एडवांटेज फंड, फ्लरिश इन्वेस्टमेंट कॉरपोरेशन, मैन्यूलाइफ टेडा इंडिया ऑपर्च्यूनिटीज इक्विटी फंड (क्यूडीआईआई), नैशनल सोशल सिक्योरिटी फंड (एनएसएसएफ) और पीपल्स बैंक ऑफ चाइना शामिल हैं। इसके अलावा वेई ची ली भी है, जो दूसरी श्रेणी की एफपीआई निवेशक है। दूसरी श्रेणी के एफपीआई में आमतौर पर म्युचुअल फंड एवं पेंशन योजनाएं शामिल हैं।
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भारतीय शेयर बाजार पर मेहरबान हुए विदेशी निवेशक, नवंबर में खरीद डाले ₹30,385 करोड़ के शेयर
हिन्दुस्तान 20-11-2022 लाइव हिन्दुस्तान
विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) का भारतीय शेयर बाजारों में जबरदस्त लिवाली का सिलसिला जारी है। नवंबर में अबतक उन्होंने शेयरों में 30,385 करोड़ रुपये का निवेश किया है। भारतीय रुपये के स्थिर होने तथा दुनिया की अन्य अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में घरेलू अर्थव्यवस्था मजबूत होने की वजह से विदेशी निवेशक एक बार फिर भारत पर दांव लगा रहे हैं।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट?
जियोजीत फाइनेंशियल सर्विसेज के मुख्य निवेश रणनीतिकार वी के विजयकुमार ने कहा कि आगे चलकर एफपीआई का रुख बहुत आक्रामक नहीं रहेगा, क्योंकि ऊंचे मूल्यांकन की वजह से वे अधिक लिवाली से बचेंगे। उन्होंने कहा कि इस समय चीन, दक्षिण कोरिया और ताइवान के बाजारों में मूल्यांकन काफी आकर्षक है और एफपीआई का पैसा उन बाजारों की ओर जा सकता है।
डिपॉजिटरी के आंकड़ों के अनुसार, एक से 18 नवंबर के दौरान एफपीआई ने शेयरों में शुद्ध रूप से 30,385 करोड़ रुपये डाले हैं। इससे पहले पिछले महीने यानी अक्टूबर में उन्होंने भारतीय बाजारों से शुद्ध रूप से आठ करोड़ रुपये निकाले थे। सितंबर में उन्होंने 7,624 विदेशी बाजार में निवेश करते समय देश करोड़ रुपये की निकासी की थी।
एफपीआई ने 51,200 करोड़ रुपये की खरीदारी
सितंबर से पहले अगस्त में एफपीआई ने 51,200 करोड़ रुपये की खरीदारी की थी। वहीं, जुलाई में वे 5,000 करोड़ रुपये के लिवाल रहे थे। इससे पहले पिछले साल अक्टूबर से लगातार नौ माह तक एफपीआई बिकवाल बने रहे थे। मॉर्निंगस्टार इंडिया के एसोसिएट निदेशक-प्रबंधक शोध हिमांशु श्रीवास्तव ने कहा कि एफपीआई के हालिया निवेश की वजह भारतीय शेयर बाजारों में तेजी, अर्थव्यवस्था में स्थिरता और अन्य मुद्राओं की तुलना में रुपये की स्थिति बेहतर रहना है।
उन्होंने कहा कि वैश्विक मोर्चे पर बात की जाए, तो अमेरिका में महंगाई अनुमान से कम बढ़ी है, जिससे यह संभावना बनी है कि फेडरल रिजर्व ब्याज दरों में आक्रामक तरीके से बढ़ोतरी नहीं करेगा। इससे धारणा में सुधार हुआ है और भारतीय बाजार में एफपीआई का निवेश बढ़ा है। हालांकि, समीक्षाधीन अवधि में एफपीआई ने ऋण या बॉन्ड बाजार से 422 करोड़ रुपये निकाले हैं। इस विदेशी बाजार में निवेश करते समय देश महीने में भारत के अलावा फिलिपीन, दक्षिण कोरिया, ताइवान और थाइलैंड के बाजारों में भी एफपीआई का प्रवाह सकारात्मक रहा है।