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कमजोर डॉलर

कमजोर डॉलर
Photo:INDIA TV Dollar के मुकाबले All Time Low पर पहुंचा रुपया

डॉलर कमजोर होने, कच्चातेल में नरमी से रुपया चार पैसे बढ़कर 81.26 प्रति डॉलर पर

मुंबई, एक दिसंबर (भाषा) अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में अमेरिकी मुद्रा के मुकाबले रुपया बृहस्पतिवार को चार पैसे के सुधार के साथ 81.26 प्रति डॉलर पर बंद हुआ। अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व के अध्यक्ष जेरोम पॉवेल के ब्याज दरों में वृद्धि की गति धीमी करने के संकेत के बाद डॉलर के व्यापक स्तर कमजोर होने के साथ रुपये में तेजी आई।

बाजार सूत्रों ने कहा कि कच्चा तेल कीमतों में गिरावट और घरेलू शेयर बाजार में तेजी आने के बीच निवेशकों की कारोबारी धारणा मजबूत हुई जबकि विदेशी पूंजी की निकासी बढ़ने से रुपये की तेजी पर कुछ अंकुश लगा।

अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में रुपया 81.08 पर खुला। कारोबार के दौरान यह 80.98 के उच्चस्तर और 81.32 के निचले स्तर तक गया। अंत में रुपया अपने पिछले बंद भाव के मुकाबले चार पैसे की तेजी के साथ 81.26 प्रति डॉलर पर बंद हुआ।

अमेरिकी मुद्रा के मुकाबले रुपये का पिछला बंद भाव 81.30 प्रति डॉलर था।

एचडीएफसी सिक्योरिटीज के शोध विश्लेषक दिलीप परमार ने कहा, ‘भारतीय रुपये ने मजबूत एशियाई मुद्राओं और जोखिम-लेने की धारणा में सुधार के साथ नए महीने की शुरुआत की।’’

उन्होंने कहा, ‘पिछले चार दिनों में से तीन में रुपये में वृद्धि हुई है। इसका कारण फेडरल रिजर्व के चेयरमैन जेरोम पॉवेल का बयान है, उन्होंने जिसमें ब्याज दरों में वृद्धि की गति धीमी रहने का संकेत दिया। इसके बाद डॉलर इंडेक्स तीन महीने के निचले स्तर पर आ गया है।’

इस बीच, दुनिया की छह प्रमुख मुद्राओं की तुलना में डॉलर की कमजोरी या मजबूती को दर्शाने वाला डॉलर सूचकांक 0.41 प्रतिशत की गिरावट के साथ 105.51 पर रह गया।

वैश्विक तेल मानक ब्रेंट क्रूड वायदा 0.10 प्रतिशत घटकर 86.88 डॉलर प्रति बैरल रह गया।

बीएसई का 30 शेयरों वाला सेंसेक्स 184.54 अंक बढ़कर 63,284.19 अंक पर बंद हुआ।

शेयर बाजार के आंकड़ों के अनुसार, विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) पूंजी बाजार में शुद्ध बिकवाल रहे और उन्होंने बृहस्पतिवार को 1,565.93 करोड़ रुपये मूल्य के शेयर बेचे।

भाषा राजेश राजेश रमण

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

Dollar के मुकाबले All Time Low पर पहुंचा रुपया, कमजोर होती करेंसी से देश को कितना नुकसान

Dollar Vs Rupees: US Fed के द्वारा बढ़ाई गई ब्याज दरों का भारतीय रुपया पर बुरा असर पड़ रहा है। रुपया डॉलर के मुकाबले लगातार कमजोर होता जा रहा है। 28 सितंबर को रुपया ऑल टाइम लो (All Time Low) पर चला गया है।

India TV Business Desk

Edited By: India TV Business Desk
Published on: September 28, 2022 11:42 IST

Dollar Rupees- India TV Hindi

Photo:INDIA TV Dollar के मुकाबले All Time Low पर पहुंचा रुपया

Highlights

  • रुपये की गिरावट का तीसरा कारण यूक्रेन युद्ध माना जा रहा है
  • इस समय एक डॉलर की कीमत 81.88 के बराबर हो गई है
  • पिछले हफ्ते बुधवार को US Fed ने ब्याज दरों में 0.75 फीसदी की बढ़ोतरी की थी

Dollar Vs Rupees: US Fed के द्वारा बढ़ाई गई ब्याज दरों का भारतीय रुपया पर बुरा असर पड़ रहा है। रुपया डॉलर के मुकाबले लगातार कमजोर होता जा रहा है। 28 सितंबर को रुपया ऑल टाइम लो (All Time Low) पर चला गया है। इस समय एक डॉलर की कीमत 81.88 के बराबर हो गई है। आगे और कमजोर होने की उम्मीद है। बता दें, पिछले हफ्ते बुधवार को US Fed ने ब्याज दरों में 0.75 फीसदी की बढ़ोतरी की थी, जिसका असर भारतीय शेयर मार्केट से लेकर रुपये पर देखने को मिल रहा है। रुपये में गिरावट से एक ओर जहां व्यापार घाटा बढ़ेगा वहीं दूसरी ओर जरूरी सामान के दाम में बढ़ोतरी होगी। इसका दोतरफा बोझ सरकार से लेकर आम आदमी पर पड़ेगा। आईए जानते हैं कि क्यों टूट रहा है रुपया और इसका भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या होगा असर?

क्यों टूट रहा है रुपया

गिरावट का एक और कारण डॉलर सूचकांक का लगातार बढ़ना भी बताया जा रहा है। इस सूचकांक के तहत पौंड, यूरो, रुपया, येन जैसी दुनिया की बड़ी मुद्राओं के आगे अमेरिकी डॉलर के प्रदर्शन को देखा जाता है। सूचकांक के ऊपर होने का मतलब होता है सभी मुद्राओं के मुकाबले डॉलर की मजबूती। ऐसे में बाकी मुद्राएं डॉलर के मुकाबले गिर जाती हैं।इस साल डॉलर सूचकांक में अभी तक नौ प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है, जिसकी बदौलत सूचकांक इस समय 20 सालों में अपने सबसे ऊंचे स्तर पर है। यही वजह है कि डॉलर के आगे सिर्फ रुपया ही नहीं बल्कि यूरो की कीमत भी गिर गई है।

रुपये की गिरावट का तीसरा कारण यूक्रेन युद्ध माना जा रहा है। युद्ध की वजह से तेल, गेहूं, खाद जैसे उत्पादों, जिनके रूस और यूक्रेन बड़े निर्यातक हैं, की आपूर्ति कम हो गई है और दाम बढ़ गए हैं। चूंकि भारत विशेष रूप से कच्चे तेल का बड़ा आयातक है, देश का आयात पर खर्च बहुत बढ़ गया है। आयात के लिए भुगतान डॉलर में होता है जिससे देश के अंदर डॉलरों की कमी हो जाती है और डॉलर की कीमत ऊपर चली जाती है।

रुपये में कमजोरी का क्या होगा असर

भारत तेल से लेकर जरूरी इलेक्ट्रिक सामान और मशीनरी के साथ मोबाइल-लैपटॉप समेत अन्य गैजेट्स आयात करता है। रुपया कमजोर होने के कारण इन वस्तुओं का आयात पर अधिक रकम चुकाना पड़ रहा है। इसके चलते भारतीय बाजार में इन वस्तुओं की कीमत में बढ़ोतरी हो रही है। भारत अपनी जरूरत का 80 फीसदी कच्चा तेल विदेशों से खरीदता है। इसका भुगतान भी डॉलर में होता है और डॉलर के महंगा होने से रुपया ज्यादा खर्च होगा। इससे माल ढुलाई महंगी होगी, इसके असर से हर जरूरत की चीज पर महंगाई की और मार पड़ेगी।

रुपये पर सीधा असर

व्यापार घाटा बढ़ने का चालू खाता के घाटा (सीएडी) पर सीधा असर पड़ता है और यह भारतीय रुपये के जुझारुपन, निवेशकों की धारणाओं और व्यापक आर्थिक स्थिरता को प्रभावित करता है। चालू वित्त वर्ष में सीएडी के जीडीपी के तीन फीसदी या 105 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। कमजोर डॉलर आयात-निर्यात संतुलन बिगड़ने के पीछे रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध से तेल और जिसों के दाम वैश्विक स्तर पर बढ़ना, चीन में कोविड पाबंदियों की वजह से आपूर्ति श्रृंखला बाधित होना और आयात की मांग बढ़ने जैसे कारण हैं। इसकी एक अन्य वजह डीजल और विमान ईधन के निर्यात पर एक जुलाई से लगाया गया अप्रत्याशित लाभ कर भी है।

देश के निर्यात में गिरावट ऐसे समय हुई है जब तेल आयात का बिल बढ़ता जा रहा है। भारत ने अप्रैल से अगस्त के बीच तेल आयात पर करीब 99 अरब डॉलर खर्च किए हैं जो पूरे 2020-21 की समान अवधि में किए गए 62 अरब डॉलर के व्यय से बहुत ज्यादा है। सरकार ने हाल के महीनों में आयात को हतोत्साहित करने के लिए सोने जैसी वस्तुओं पर आयात शुल्क बढ़ाने, कई वस्तुओं के कमजोर डॉलर आयात पर पाबंदी लगाने तथा घरेलू उपयोग में एथनॉल मिश्रित ईंधन की हिस्सेदारी बढ़ाने के प्रयास करने जैसे कई कदम उठाए हैं। इन कदमों का कुछ लाभ हुआ है और आयात बिल में कुछ नरमी जरूर आई है लेकिन व्यापक रूझान में बड़े बदलाव की संभावना कम ही नजर आती है।

आजादी के बाद से ही रुपया होता रहा कमजोर

भारत को 15 अगस्त 1947 को आजादी मिली। उस समय एक डॉलर की कीमत एक रुपये हुआ करती थी, लेकिन जब भारत स्वतंत्र हुआ तब उसके पास उतने पैसे नहीं थे कि अर्थव्यवस्था को चलाया जा सके। उस समय देश के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू (Pandit Jawaharlal Nehru) थे। उनके नेतृत्व वाली सरकार ने विदेशी व्यापार को बढ़ाने के लिए रुपये की वैल्यू को कम करने का फैसला किया। तब पहली बार एक डॉलर की कीमत 4.76 रुपये हुआ था।

पहली बार की आर्थिक मंदी ने रुपये की कमर तोड़ दी

देश के आजाद होने के बाद से पहली बार 1991 में मंदी आई। तब केंद्र में नरसिंम्हा राव (Narasimha Rao) की सरकार थी। उनकी अगुआई में आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत की गई, जिसने रुपये की कमर तोड़ दी। रिकार्ड गिरावट के साथ रुपया प्रति डॉलर 22.74 पर जा पहुंचा। दो साल बाद रुपया फिर कमजोर हुआ। तब एक डॉलर की कीमत 30.49 रुपया हुआ करती थी। उसके बाद से रुपये के कमजोर होने का सिलसिला चलता रहा है। वर्ष 1994 से लेकर 1997 तक रुपये की कीमतों में उतार-चढ़ाव देखने को मिला। उस दौरान डॉलर के मुकाबले रुपया 31.37 से 36.31 रुपये के बीच रहा।

डॉलर मजबूत या रुपया कमजोर? मार्केट गुरु अनिल सिंघवी ने बताया क्या है असल माजरा- खुद समझिए और निर्णय लीजिए.

अनिल सिंघवी ने कहा कि हमें सबसे पहले एक साल में क्या हुआ ये समझना जरूरी है. अक्टूबर 2021 में एक डॉलर की वैल्यू लगभग 75 रुपए थी और आज डॉलर के लिए 82.35 रुपए खर्च करना पड़ रहा है.

कमजोर होते रुपए पर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का एक बयान काफी चर्चा में है. उन्होंने कहा था कि दरअसल रुपया नहीं कमजोर रहा बल्कि डॉलर मजबूत हो रहा है. FM का यह बयान देशभर में हॉट टॉपिक (Hot Topic) बना हुआ है. सोशल मीडिया पर मीम्स की बाढ़ सी आ गई. हालांकि, हमें वित्त मंत्री के इस बयान को फैक्ट्स के जरिए समझना चाहिए. इस पर ज़ी बिजनेसे मैनेजिंग एडिटर अनिल सिंघवी ने अपना एनालिसिस दिया.

डॉलर के मुकाबले डॉलर की स्थिति

अनिल सिंघवी ने कहा कि हमें सबसे पहले एक साल में क्या हुआ ये समझना जरूरी है. अक्टूबर 2021 में एक डॉलर की वैल्यू लगभग 75 रुपए थी और आज डॉलर के लिए 82.35 रुपए खर्च करना पड़ रहा है. यानी सालभर में भारतीय रुपया करीब 10 फीसदी कमजोर हुआ है. ऐसे सवाल उठता है कि क्या डॉलर मजबूत हो रहा है या रुपया कमजोर हो रहा है?

वित्त मंत्री #NirmalaSitharaman के बयान के बाद सबसे चर्चित विषय.

उन्होंने कहा कि सबसे पहले हमें समझना चाहिए कि भारतीय रुपया डॉलर के मुकाबले भी ट्रेड करता है और दुनिया की अन्य करेंसी के सामने भी ट्रेड करता है, जिसमें यूरोप का यूरो, ब्रिटेन का पाउंड, जापान का येन समेत अन्य शामिल हैं. ऐसे में हमें कुछ फैक्टर्स पर ध्यान देना चाहिए.

  • दुनिया की दूसरी बड़ी करेंसी के मुकाबले रुपए का प्रदर्शन कैसा है
  • दुनिया की अन्य करेंसी डॉलर के मुकाबले कैसी हैं
  • अगर रुपया दूसरी करेंसी के सामने भी कमजोर हुआ है, तो रुपया कमजोर हुआ है
  • अगर दूसरी करेंसी भी डॉलर के सामने गिरी हैं तो डॉलर मजबूत हो रहा है

दुनिया की अन्य बड़ी करेंसी के सामने रुपए का प्रदर्शन

ग्रेट ब्रिटेन पाउंड (GBP) के लिए अक्टूबर 2021 में 103 भारतीय रुपए खर्च करने पड़ते थे, जो अक्टूबर 2022 में घटकर 93 रुपए हो गई. यानी पॉउंड से सामने भारतीय रुपया करीब 10 फीसदी मजबूत हुआ है. वहीं यूरो की कीमत सालभर पहले 87 रुपए थी, जो अब 81 रुपए हो गई. यहां भी भारतीय रुपया यूरो के मुकाबले करीब 9 फीसदी मजबूत हुआ है. इसके अलावा जापान की करेंसी येन का भाव अक्टूबर 2021 में 0.65 रुपए थी, जो इस साल अक्टूबर में 0.55 रुपए हो गई. यानी येन के सामने भारतीय रुपया मजबूत हुआ है.

रुपए के सामने कम मजबूत हुआ डॉलर

अनिल सिंघवी ने बताया कि भारतीय रुपया केवल डॉलर के मुकाबले कमजोर हुआ है. जबकि दुनिया की अन्य बड़ी करेंसी के सामने 8 से 10 फीसदी तक मजबूत हुआ है. उन्होंने यह भी बताया कि डॉलर क्यों मजबूत हुआ. उन्होंने बताया कि एक साल में डॉलर दुनिया के लगभग सभी करेंसी के मुकाबले मजबूत हुआ है. यह बढ़त करीब 20 फीसदी तक की है. दूसरी ओर भारतीय रुपया केवल 10 फीसदी ही कमजोर हुआ है. इसका मतलब है कि भारतीय रुपया अन्य करेंसी के मुकाबले कम कमजोर हुआ है. इसीलिए यह माना जाता है कि रुपए के सामने डॉलर कम मजबूत हुआ है.

डॉलर इंडेक्स क्या होता है?

डॉलर इंडेक्स में दुनिया की 6 बड़ी करेंसी शामिल हैं, जिनको डॉलर के सामने नापा जाता है. इंडेक्स यूरो, पाउंड, येन, स्विस फ्रैंक और स्वीडिश क्रोना शामिल हैं. एक साल में कमजोर डॉलर डॉलर इंडेक्स 93 से बढ़कर 112 पर पहुंच गया है. यानी डॉलर इंडेक्स सालभर में करीब 20 फीसदी चढ़ा है.

रुपए के सामने डॉलर क्यों मजबूत हो रहा?

अनिल सिंघवी के मुताबिक रुपए की कमजोरी में बड़ी भूमिका कच्चे तेल की है. क्योंकि देश के इंपोर्ट बिल में 30 से 40 फीसदी हिस्सेदारी क्रूड का है. ऐसे में जब हम क्रूड के बिल पेमेंट करते हैं तो इसके लिए डॉलर का इस्तेमाल होता है. इसीलिए डॉलर की डिमांड बढ़ती है. दूसरी वजह है अमेरिका में ब्याज दरों में इजाफा होना. इसी साल फरवरी में US में ब्याज दर जीरो था, जो अब बढ़कर 3.5 फीसदी हो गया है. इससे डॉलर में मजबूती आई. चुंकि निवेशक ज्यादा से ज्यादा रकम डॉलर में रखना चाहते हैं, तो ऐसी स्थिति में डॉलर की डिमांड बढ़ती है. क्योंकि अमेरिका में ब्याज दरें बढ़ने से सुरक्षित निवेश के तौर पर डॉलर की डिमांड बढ़ती है.

अनिल सिंघवी का एनालिसिस

सबसे पहले आपको अपने देश की स्थिति के बारे में पता होना चाहिए. बिना किसी पूर्व मानसिकता के फैक्ट्स को देखना चाहिए, जिसमें साफ है कि डॉलर मजबूत हो रहा है न कि रुपया कमजोर हो रहा है. कुल मिलाकर डॉलर ज्यादा मजबूत हो रहा है और रुपया कम कमजोर हो रहा है.

'रुपया कमजोर नहीं हो रहा,डॉलर मजबूत हो रहा', निर्मला सीतारमण का बयान पूरा सच है?

FM Nirmala Sitaraman का बयान लोगों को रोजमर्रा की जिंदगी में सहूलियत नहीं देता है.

'रुपया कमजोर नहीं हो रहा,डॉलर मजबूत हो रहा', निर्मला सीतारमण का बयान पूरा सच है?

"गिरता रुपया बोझ बढ़ा रहा है. सरकार ईंधन की कीमतें नियंत्रित कर रही है. ये घबराहट पैदा करने के लिए सरकार जिम्मेदार है. क्या सरकार इस जिम्मेदारी से बच सकती है?"

जरा अनुमान लगाइए ये बात किसने कही थी? ये निर्मला सीतारमण ही थीं जिन्होंने 2 सितंबर 2013 को यह ट्वीट किया था. तब वो विपक्षी दल बीजेपी की प्रवक्ता थीं. अब, वो अपनी सत्ताधारी पार्टी की वित्त मंत्री हैं और गिरते रुपया पर बयान को लेकर चर्चा में हैं. सब तरफ हाहाकार मचा हुआ है लेकिन वो अपनी ही धुन में हैं.

निर्मला सीतारमण ने कहा कि भारतीय रुपया ने दूसरे इमर्जिंग मार्केट की करेंसी की तुलना में ज्यादा बेहतर प्रदर्शन किया है.

FM: रुपए की वैल्यू में 10% की गिरावट ज्यादा चिंताजनक बात नहीं है. इस बात के बावजूद की अमेरिका में ब्याज दरें बढ़ने से अमेरिका की तरफ पैसे का फ्लो ज्यादा बढ़ रहा है और डॉलर मजबूत हो रहा है.

डॉलर की कीमतें बढ़ने से इंपोर्ट पर असर पड़ता है और इंपोर्ट के लिए ज्यादा कीमतें चुकानी पड़ती हैं. कमजोर रुपए का सीधा मतलब तेल कीमतों के लिए भारत को ज्यादा पैसे देने पड़ते हैं.

किसी भी इकनॉमी की वैश्विक मजबूती इस बात से ही तय होती है कि वो कितना एक्सपोर्ट करती है और खासकर राष्ट्रीय आय (GDP) में इसका कितना हिस्सा है.

एक बढ़िया फॉरेन एक्सचेंज पॉलिसी लंबी अवधि में देश की मुकाबला करने की क्षमता को कमजोर नहीं करती है. आप सिर्फ चीन को ही देखिए, जो संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ कड़ी टक्कर लेता रहता है और सरकार जानबूझकर चीनी करेंसी रॅन्मिन्बी को कमजोर रखती है.

BJP समर्थक अक्सर राष्ट्रवादी जोश में कहते हैं कि एक मजबूत मुद्रा एक मजबूत अर्थव्यवस्था का संकेत देती है, लेकिन अक्सर चीन से आगे निकलने के अपनी जिद के कमजोर डॉलर बावजूद यह भूल जाते हैं कि एक कमजोर करेंसी एक्सपोर्ट को प्रोत्साहित करती है और इंपोर्ट को रोकती है.

रुपया-डॉलर का ग्राफ क्या इशारा करता है

यहां हम आपको बता देते हैं कि पिछले हफ्ते आखिर उन्होंने क्या कहा था: “सबसे पहले, मैं इसे ऐसे देखना चाहूंगी कि रुपया कमजोर नहीं हो रहा है, बल्कि डॉलर लगातार मजबूत होता जा रहा है." फिर इसी पद पर यानि कभी वित्त मंत्री रहे और अब विपक्ष के नेता कांग्रेसी पी चिदंबरम ने निर्मला सीतारमण के बयान पर प्रतिक्रिया देने में देरी नहीं की और कहा " एक उम्मीदवार या पार्टी जो चुनाव हारती है, वह हमेशा कहेगी. हम चुनाव नहीं हारे, लेकिन दूसरी पार्टी ने चुनाव जीता."

"मैं तकनीकी पहलू नहीं समझा रही, लेकिन यह तथ्य है कि भारत का रुपया शायद इस डॉलर की दर में बढ़ोतरी का सामना कर पा रहा है, डॉलर को मजबूत करने के पक्ष में अभी एक्सचेंज रेट है और मुझे लगता है कि भारतीय रुपये ने कई दूसरे इमर्जिंग इकनॉमी की तुलना में काफी बेहतर प्रदर्शन किया है.”

निर्मला सीतारमण सही हैं लेकिन क्या ये पूरा सच है? फिर ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि उनकी बात भारत की रोजाना की आर्थिक जिंदगी के लिए कितनी कमजोर डॉलर कमजोर डॉलर प्रासंगिक है? रुपए की वैल्यू को लेकर इतना हंगामा क्यों मचाना?

ग्लोबल इकनॉमी में डॉलर का कैसे है वर्चस्व ?

ये वो सवाल है जिनका बेहतर जवाब पॉपुलर जोक के जरिए समझा जा सकता है?

सवाल: क्या आप सिंगल हैं?

जवाब: कौन पूछ रहा है इस पर निर्भर करता है .

बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि आप एक्सपोर्टर हैं या फिर इंपोर्टर या फिर दोनों का मिक्स..या फिर इंपोर्टेड प्रोडक्ट के कंज्यूमर. यदि आप फ्रेंच पनीर या इतालवी ओलिव पसंद करते हैं, तो आप अमेरिकी डॉलर में सामान नहीं खरीद रहे होंगे, लेकिन पिछले एक साल में अमेरिकी मुद्रा की तुलना में रुपये के मूल्य में लगभग 10% की गिरावट अभी भी आपको चिंतित करेगी क्योंकि अधिकांश फॉरेन बिल अभी भी प्रत्यक्ष या फिर अप्रत्यक्ष तौर पर डॉलर में होते हैं. अनौपचारिक रूप से, डॉलर राजा है और यह एक ऐसी चीज है जिसका सिक्का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में चलता है. यह सच है कि अमेरिका में ब्याज दरें बढ़ने से उस देश की तरफ पूंजी का फ्लो ज्यादा होता है और इससे डॉलर और मजबूत होता है लेकिन इस मामले में इतना ही सबकुछ नहीं है. इसके अलावा और भी बहुत कुछ है जिस पर ध्यान देना जरूरी है.

वित्त मंत्री सच बता रही थीं, लेकिन वो आधा सच ही था, क्योंकि महंगा डॉलर उन सबका बजट बिगाड़ता है जो भारत में सामान इंपोर्ट करते हैं. एक कमजोर रुपया का सीधा मतलब तेल के लिए ज्यादा पैसे चुकाना और तेल के लिए ज्यादा पैसे भरने का असर हमारी दूसरी हर छोटी-बड़ी हर चीज जिसका ट्रांसपोर्ट होता है उस पर दिखता है.

एक्सचेंज रेट और इकनॉमी में गहरा नाता

2013 में उन्होंने जो ट्वीट किए थे, आपको सिर्फ उसको देखना चाहिए जो आज के संदर्भ में भी काफी हद तक सही हैं. लेकिन अगर आप एक एक्सपोर्टर हैं, तो चीजें साफ साफ दिख सकती हैं क्योंकि बिल आप अमेरिकी डॉलर में भर रहे हैं. उदाहरण के लिए सॉफ्टवेयर एक्सपोर्ट जो वॉल स्ट्रीट या सिलिकॉन वैली के क्लाइंट को सेवाएं दे रहा है उसके बिल से भी सब समझ में आ जाएगा.

वास्तव में, आप तर्क दे सकते हैं कि एक हेल्दी एक्सचेंज रेट पॉलिसी ऐसी है कि यह एक्सपोर्टर्स का जोश कम नहीं करती है क्योंकि लंबे समय में, एक अर्थव्यवस्था की वैश्विक ताकत इस बात से निर्धारित होती है कि वह कितना एक्सपोर्ट कर सकती है और, विशेष रूप से नेशनल इनकम (GDP) में इसका क्या हिस्सा रहता है. कितना कम वो इंपोर्ट करते हैं ताकि व्यापार घाटा और इसके भी ज्यादा, चालू खाता घाटा यानी CAD (जिसमें रेमिटेंस और पर्यटन आय भी शामिल है) व्यापक रूप से बढ़ ना जाए.


रुपए में उठापटक की वजह क्या?

चालू वित्तीय साल 2022-23 की अप्रैल-जून तिमाही में भारत का करेंट अकांउट डेफिसिट 23.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर (जीडीपी का 2.8%) दर्ज किया गया जो जनवरी-मार्च तिमाही में 13.4 बिलियन डॉलर (जीडीपी का 1.5%) से ज्यादा) है. एक साल पहले के नंबर से यह 6.6 बिलियन डॉलर (जीडीपी का 0.9%) ज्यादा है.

आप पहली तिमाही में जो CAD है उसका ठीकरा यूक्रेन युद्ध से पैदा हुए तनाव पर फोड़ सकते हैं और फिर एक साल पहले के सरप्लस घाटा को कोविड -19 महामारी से जुड़ी कम आर्थिक गतिविधियों का नतीजा बता सकते हैं लेकिन एक सामान्य तथ्य यहां पर यह है कि जुलाई-सितंबर तिमाही में भी ज्यादा संभावनाएं नहीं हैं. कमजोर भारतीय रुपये के कारण पहली तिमाही जितना व्यापक घाटा भले ही ना हो लेकिन घाटा बढ़ा ही है.

फिर भी इस बात को दिमाग में रखना महत्वपूर्ण है कि हेल्दी फॉरेन एक्सचेंज पॉलिसी ऐसा कुछ नहीं है कि लंबी अवधि में यह प्रतिस्पर्धा की क्षमता को प्रभावित करती है. आप सिर्फ चीन पर नजर डालें, जो संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ लगातार संघर्ष में रहता है और चीनी सरकार अपनी करेंसी ‘रेनमिनीबी’ को कमजोर बनाए रखती है.

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