अनुबंध मात्रा

इस लक्ष्य तक पहुंचने के लिए, दुनिया भर में हम हर साल बिजली की जो खपत करते हैं उसकी हर इकाई के लिए, सीधे तौर पर काफ़ी मात्रा में पवन और सौर ऊर्जा खरीदेंगे. इसके अलावा, हमारा मुख्य उद्देश्य है कि अक्षय स्रोतों से नई ऊर्जा बनाई जाए, इसलिए हम सिर्फ़ उन ही परियोजनाओं से ऊर्जा खरीदते हैं जिनका खर्चा हमारी खरीद से ही चलता है.
100% अक्षय ऊर्जा का इस्तेमाल तो सिर्फ़ शुरुआत है
मुझे यह घोषणा करते हुए बहुत खुशी हो रही है कि 2017 में Google का सारा काम 100% अक्षय ऊर्जा से होगा. यानी दुनिया भर में फैले हमारे सारे दफ़्तर अनुबंध मात्रा और डेटा सेंटर कुदरत से मिलने वाली ऊर्जा का इस्तेमाल करेंगे. यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि है. हम सबसे बड़े कॉर्पोरेशन में से एक थे, जिन्होंने सीधे तौर पर अक्षय ऊर्जा खरीदने के लिए बड़े पैमाने पर लंबे समय वाले अनुबंध किए; हमने 2010 में आयोवा के एक 114-मेगावॉट पवन फ़ार्म की सारी बिजली खरीदने के लिए हमारा पहला अनुबंध पर हस्ताक्षर किए. आज, हम अक्षय ऊर्जा के दुनिया के सबसे बड़े कॉर्पोरेट खरीदार हैं. हम 2.6 गीगावॉट (2,600 मेगावॉट) पवन और सौर ऊर्जा खरीदने के लिए प्रतिबद्ध हैं. यह कई विशाल सुविधाओं से ज़्यादा बड़ी है और मार्टी मैकफ़्लाई को समय में वापस भेजने के लिए इस्तेमाल हुए 1.21 गीगावॉट के दोगुने से भी ज़्यादा है.
दागी राइस मिल फर्म से हुआ अनुबंध
अफसरों की लापरवाही से विभाग की छवि खराब हो रही है। दागी राइस मिलर्स से धान की कुटाई का अनुबंध किए जाने पर उनकी कार्यशैली पर सवाल खड़ा हो रहा है। बीते साल धान की कुटाई करने के बाद काफी मात्रा में चावल मिल संचालक हजम कर गया था। इस बार उसको फिर से कुटाई करने की जिम्मेदारी दी गई। इससे यह साबित हो रहा है कि बिना जांच के ही मिलर्स का अनुबंध हो रहा है। हालांकि मामला प्रकाश में आने के बाद अफसरों ने उसके द्वारा कुटाई करने पर रोक लगा दिया गया है।
संवाद सूत्र, प्रतापगढ़ : अफसरों की लापरवाही से विभाग की छवि खराब हो रही है। दागी राइस मिलर्स से धान की कुटाई का अनुबंध किए जाने पर उनकी कार्यशैली पर सवाल खड़ा हो रहा है। बीते साल धान की कुटाई करने के बाद काफी मात्रा में चावल मिल संचालक हजम कर गया था। इस बार उसको फिर से कुटाई करने की जिम्मेदारी दी गई। इससे यह साबित हो रहा है कि बिना जांच के ही मिलर्स का अनुबंध हो रहा है। हालांकि मामला प्रकाश में आने के बाद अफसरों ने उसके द्वारा कुटाई करने पर रोक लगा दिया गया है।
लिखित अनुबंध पर ही खेती कर सकेंगे बटाईदार
मध्यप्रदेश में भू स्वामी से लिखित अनुबंध पर ही खेती कर सकेंगे बटाईदार किसान इसके लिए मध्य प्रदेश की विधानसभा में पारित किए गए इस विधेयक को राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद अब पूरे प्रदेश में कानून के रूप में यह प्रभावशाली हो चुका है। अब तक भूमि स्वामी मौखिक रूप से ही बटाई पर भूमि देते थे और लिखित में देने से हिचकते थे। भूमि हर साल अनुबंध मात्रा बटाईदारों को बदल भी देते थे ताकि कोई भी बटाईदार भूमि का अधिकार प्राप्त न कर पाए। ऐसे में भूमि स्वामी और बटाईदार दोनों के हितों को सुरक्षित रखने के साथ-साथ भूमि संसाधन का अधिकतम और लाभप्रद उपयोग हो, इसके लिए भूमि को बटाई पर दिए अनुबंध मात्रा जाने की व्यवस्था को कानून के तहत कर दिया गया है।
अनुबंध की तीन प्रतियाँ बनबानी होगी
एक सादे कागज पर निर्धारित प्रारूप के अनुसार भूमि स्वामी और बटाईदार के बीच यह अनुबंध लिखित रूप से होगा। इसकी तीन प्रतियां होंगी, इनमें एक-एक भूमि स्वामी और बटाईदार के पास, जबकि तीसरी प्रति तहसीलदार के पास दी जाएगी।
यह अनुबंध अधिकतक पांच साल के लिए किया जा सकेगा। नहीं कर सकेगा बटाईदार भूमि पर कब्जा कानून में स्पष्ट रूप से लिखा गया है कि अनुबंध के तहत बटाईदार का भूमि स्वामी की भूमि पर कोई अधिकार नहीं रहेगा और भूमि पर किसी भी अधिकार या लाभ के लिए न्यायालय में अनुबंध मात्रा आवेदन या याचिका प्रस्तुत नहीं कर सकेगा। बटाईदार को उस भूमि पर कृषि कार्य करने का अधिकार होगा।
अनुबंध तोड़ने पर लगेगा जुर्माना
अनुबंध का पालन न करने पर कानून में जुर्माने का प्रावधान किया गया है। इसके तहत तहसीलदार 10,000 रुपए प्रति हेक्टेयर के हिसाब से जुर्माना वसूल सकेगा। अनुबंध में लाभ प्रतिशत का होगा उल्लेख कानून के तहत अनुबंध में यह भी विवरण दिया जाएगा कि प्राकृतिक आपदा के समय सरकार की ओर से मिलने वाली सहायता राशि में कितने प्रतिशत दोनों को मिलेगा। अनुबंध की अवधि पूरी होने के बाद भूमि पर भूमि स्वामी का कब्जा हो जाएगा।
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अनुबंध कृषि : किसान और व्यापारी के बीच विवादों के समाधान के लिए सरकार ने जारी किए नियम
अनुबंध कृषि (Contract Farming) से जुड़े विवादों के समाधान के लिए केंद्र सरकार ने नियम ओर अनुबंध मात्रा प्रक्रिया जारी की है। अधिसूचित नियमों के अनुसार, सब-डिवीजनल मजिस्ट्रेट (एसडीएम) दोनों पक्षों से समान प्रतिनिधित्व वाले सुलह बोर्ड का गठन करके विवाद को हल किया जाएगा। मीडिया में प्रकाशित खबरों के अनुसार एक अधिकारी ने बताया कि सुलह बोर्ड की नियुक्ति की तारीख से 30 दिनों के भीतर सुलह की प्रक्रिया पूरी होनी चाहिए। यदि सुलह बोर्ड विवाद को हल करने में विफल रहता है, तो या तो पार्टी उप-विभागीय प्राधिकरण से संपर्क कर सकती है, जिसे उचित सुनवाई के बाद आवेदन दाखिल करने के 30 दिनों के भीतर मामले का फैसला करना होगा।
किसान 30 दिनों के भीतर कर सकते हैं अपील दायर
अनुबंध कृषि (Contract Farming) नियमों को लेकर अधिकारी ने कहा कि इस तरह के आदेश के तीस दिनों के भीतर, किसान खुद जाकर या इलेक्ट्रॉनिक प्रारूप में अपीलीय प्राधिकारी के पास अपील दायर कर सकते हैं। संबंधित पक्षों को सुनवाई का उचित अवसर देने के बाद, प्राधिकरण को ऐसी अपील दायर करने की तारीख से 30 दिनों के भीतर मामले का निपटान करना होगा। अधिकारी ने कहा कि अपीलीय अधिकारी द्वारा पारित आदेश में सिविल कोर्ट के निर्णय का बल होगा। पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में किसान इस कृषि कानून के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं, जिसका उद्देश्य किसानों को उनकी फसल खराब होने पर सुनिश्चित मूल्य की गारंटी देना है।
क्या है कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग (Contract अनुबंध मात्रा अनुबंध मात्रा Farming) और इसे लेेकर किसान में क्यूं बना हुआ है डर
अनुबंध पर खेती का अनुबंध मात्रा मतलब ये है कि किसान अपनी जमीन पर खेती तो करता है, लेकिन अपने लिए नहीं बल्कि किसी और के लिए। कॉन्ट्रैक्ट खेती में किसान को पैसा नहीं खर्च करना पड़ता। इसमें कोई कंपनी या फिर कोई आदमी किसान के साथ अनुबंध करता है कि किसान द्वारा उगाई गई फसल विशेष को कॉन्ट्रैक्टर एक तय दाम में खरीदेगा। इसमें खाद, बीज से लेकर सिंचाई और मजदूरी सब खर्च कॉन्ट्रैक्टर के होते हैं। कॉन्ट्रैक्टर ही किसान को खेती के तरीके बताता है। फसल की क्वालिटी, मात्रा और उसके डिलीवरी का समय फसल उगाने से पहले ही तय हो जाता है। हालांकि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग किसानों के लिए लाभकारी साबित हो सकती है।
बता दें कि गुजरात में बड़े पैमाने पर कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग हो रही है। महाराष्ट्र और दक्षिण भारत के कई राज्यों में अनुबंध पर खेती की जा रही है और इस खेती के अच्छे परिणाम सामने आ रहे हैं। इसके बावजूद देश के कई राज्यों में किसान इसका विरोध कर रहे हैं, किसानों को डर है कि कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग कानून किसी भी विवाद के मामले में बड़े कॉर्पोरेट और कंपनियों का पक्ष लेंगे। इस आशंका को खारिज करते हुए, अधिकारी ने कहा कि किसानों के हित में कृषि कानूनों का गठन किया गया है। अधिकारी ने कहा कि एक समझौते में प्रवेश करने के बाद भी, किसानों को अपनी पसंद के अनुसार कॉन्ट्रैक्ट को समाप्त करने का विकल्प होगा। हालांकि, अन्य पक्ष-किसी भी कंपनी या प्रोसेसर-को समझौते के प्रावधानों का पालन करना होगा। वे दायित्वों को पूरा किए बिना कॉन्ट्रैक्ट से बाहर नहीं निकल सकते है।
एग्रीमेंट में लापरवाही: मिलरों से अनुबंध मात्रा अनुबंध ही नहीं किए फिर 72 घंटे में कैसे होगा धान का उठाव
धान खरीदी शुरू अनुबंध मात्रा हुए 6 दिन गुजर गए पर अभी तक धान का उठाव करने के लिए मिलरों से अनुबंध ही नहीं हुआ है। खरीदी करने के बाद 72 घंटे के भीतर ही उठाव करने का नियम है। यह तो शुक्र है कि धान खरीदी में तेजी नहीं आई है। पिछले साल उठाव में देरी से 40 किलो की बोरी में 300 से 400 ग्राम वजन घटने से कर्मचारियों को ही भरपाई करनी पड़ी थी। इसको लेकर विवाद भी हुआ था। जिले में 41 सहकारी समितियों के 55 धान खरीदी केंद्र हैं। इस बार रिकॉर्ड 46295 किसानों ने धान बेचने के लिए पंजीयन कराया है।
पंजीकृत रकबा भी बढ़कर 61582 हेक्टेयर हो गया है। इस साल 19 लाख क्विंटल धान खरीदी का लक्ष्य रखा है, लेकिन सभी पंजीकृत किसान धान बेचेंगे तो मात्रा 21.90 लाख क्विंटल तक पहुंचेगा। उसके हिसाब से ही धान का उठाव भी करना पड़ेगा। समय पर धान का उठाव नहीं होने का खामियाजा किसानों और समितियों को ही उठाना पड़ता है। कई बार धान जाम होने से खरीदी बंद करनी पड़ती है। यही नहीं अधिक दिनों तक धान को रखने से अनुबंध मात्रा सूख जाता है। पिछले 3 साल से जीरो शॉर्टेज पर ही धान की खरीदी हो रही है।