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युग्मों की लोकप्रियता के कारण

युग्मों की लोकप्रियता के कारण
एक और छंद विचारणीय है:

सृजनात्मकता के कारक

प्रत्येक व्यक्ति में किसी न किसी प्रकार की मानसिक योग्यता होती है। जिसके आधार पर वह लेखक, कलाकार वैज्ञानिक तथा संगीतज्ञ इत्यादि बनता है। मानव जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सृजनात्मकता की अभिव्यक्ति होती है। आज के जटिल समाज में वैज्ञानिक एवं तकनीकी उपलब्धियों को पाने के लिए सृजनात्मकता व्यक्तियों का होना युग्मों की लोकप्रियता के कारण राष्ट्र की प्रमुख आवश्यकता बन गयी है।

समाज, व्यक्ति व राष्ट्र के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण होने के बावजूद, सृजनात्मकता की कोर्इ एक सार्वभौमिक परिभाषा उपलब्ध नही है इसका कारण यह है कि अलग-अलग चिन्तक इसे अलग-अलग परिप्रेक्ष्य में देखते हैं। सृजनात्मकता का सबसे लोकप्रिय अर्थ गिलाफोर्ड में बताया गया है। इनक अनुसार चिन्तन दो तरह के होते है।

  1. अभिसारी चिन्तन
  2. अपसरण चिन्तन

सृजनात्मकता चिन्तन की अवस्थाएं -

  1. तैयारी- इस अवस्था में व्यक्ति को समस्या के पक्ष व विपक्ष में आवश्यक तथ्य एकत्र करने होते है। जैसे एक चित्रकार को अपनी पेन्टिंग बनाने से पूर्व किसी प्राकृतिक स्थान पर बैठकर रंग, आकार, रोशनी आदि का ज्ञान प्राप्त करना होता है।
  2. उद्भवन - यह चिन्तन की वह अवस्था है जिसमें व्यक्ति की निष्क्रियता बढ़ जाती है। यह निष्क्रिय अवस्था लम्बी तथा छोटी दोनो प्रकार की हो सकती है। इस अवस्था में व्यक्ति समस्या के समाधान के बारे में चिन्तन छोड़कर विश्राम करने लगता है।
  3. प्रबोधन- इस अवस्था में अचानक व्यक्ति को समस्या का समाधान दिखायी देता है। उद्भवन की अवस्था में व्यक्ति अचेतन रूप से समस्या के भिन्न-भिन्न पहलुओं को पुनसंगठित करता है और उसे अचानक समस्या का समाधान नजर आ जाता है।
  4. प्रमाणीकरण - सृजनात्मकता के लिए परे्रणा अति आवश्यक हाते ी है क्योंकि यह सामग्री की व्यवस्था करती है। कल्पना के द्वारा जो कार्य शुरू किया जाता है उसे बुद्धि एवं निर्णय के द्वारा पूर्ण किया जाता है। इस अवस्था में समस्या युग्मों की लोकप्रियता के कारण के समाधान की जांच होती है कि वह ठीक है अथवा नही।

सृजनात्मकता को बढा़ने के उपाय -

प्रत्येक व्यक्ति में सृजनशील होने के गुण होते हैं परन्तु अच्छा वातावरण न मिल पाने के कारण इसका विकास नही हो पाता है। सृजनात्मकता को उन्नत बनाने के लिए आसवार्न ने विक्षिप्तकरण विधि को महत्वपूर्ण बताया है। इस विधि में व्यक्ति को अधिक से अधिक संख्या में नये-नये विचारों को देना होता है तथा अन्य लोगों के विचारों को भी संयोजित कर सकते हैं इसमें प्रत्येक व्यक्ति अपने आप को तथा एक दूसरे को प्रोत्साहित करता है। अनुसंधानों से यह पता चलता है कि विक्षिप्तकरण से विचारों की गुणवत्ता तथा मात्रा दोनों में बढ़ोत्तरी होती है।

सृजनात्मकता को उन्नत बनाने के लिए गौर्डन द्वारा साइनेक्टिस विधि का प्रयोग किया गया है। इसमें सादृश्यता का प्रयोग किया गया है। मुख्य रूप से व्यक्तिगत सादृश्यता इस तरह की सादृश्यता में व्यक्ति को अपने आप को किसी परिस्थिति में रखने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। जैसे यदि आप यह चाहते हैं कि कोर्इ खास मशीन ठीक ढंग से कार्य करे तो कल्पना करें कि खुदही वह मशीन है। प्रत्यक्ष सादृश्यता इसमें व्यक्ति को ऐसी चीजे पाने या खोजने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है जो समस्या के समाधान में सहायता करता है। सांकेतिक सादृश्यता में वस्तुनिष्ठ अव्यक्तिक का प्रयोग करके सर्जनात्मकता बढ़ाने का प्रयास किया जाता है। कल्पनाचित्र सादृश्यता में व्यक्ति किसी घटना या वस्तु पर सामान्य सीमाओं से स्वतंत्र होकर कल्पना करता है। इन विधियों के उपयोग द्वारा उद्योग, व्यवसाय तथा शिक्षा के क्षेत्र में लोगों की सृजनात्मकता को बढ़ाया जाता है।

मोबाइल पर रोज चल युग्मों की लोकप्रियता के कारण रही हिंदी की एक अनूठी क्लास,कोई भी घर बैठे हो युग्मों की लोकप्रियता के कारण सकता है शामिल

बिलासपुर । आज के दौर में हिंदी को लेकर काम करने वालों की कमी नहीं है। ऐसा ही एक नाम है- बिलासपुर की संज्ञा टंडन का……। जो प्रदेश युग्मों की लोकप्रियता के कारण ही नहीं देश के जाने-माने भाषाविद् प्रोफेसर डाॅ.रमेशचंद्र महरोत्रा की सुपुत्री हैं और आज के दौर के मीडिया यानी मोबाइल-इंटरनेट के जरिए हिंदी की बेहतरी के लिए बड़ा काम कर रही हैं। हिंदी दिवस पर जब सब ओर हिंदी की बात हो रही है, ऐसे में संज्ञा टंडन की मोबाइल पर लगने वाली रोज की क्लास पर बात न हो तो कुछ अधूरा सा लगता है। अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाते हुए संज्ञा टंडन रोज एक वेबसाइट पर ऑडियो के जरिए हिंदी के दो एक समान से लगने वाले शब्दों की चर्चा करती हैं। और उनके प्रयोग को लेकर संदेहों को दूर करती हैं। सोशल मीडिया ( वाट्सअप और फेसबुक ) के जरिेए यह रोज हजारों लोग तक पहुंच रहा है और इसे काफी लोकप्रियता भी मिल रही है।

आदम की कहानी (5 का भाग 5): पहला आदमी और आधुनिक विज्ञान

इस्लाम में, ईश्वर में आस्था और आधुनिक वैज्ञानिक ज्ञान के बीच कोई विरोध नहीं है। दरअसल, मध्य युग के दौरान कई शताब्दियों तक, मुसलमानों ने वैज्ञानिक जांच युग्मों की लोकप्रियता के कारण और अन्वेषण में दुनिया का नेतृत्व किया। लगभग 14 शताब्दी पहले प्रकट किया गया क़ुरआन स्वयं उन तथ्यों और कल्पनाओं से भरा है जो आधुनिक वैज्ञानिक निष्कर्षों द्वारा समर्थित हैं। उनमें से तीन का उल्लेख यहां किया जाएगा। उनमें से, भाषा का युग्मों की लोकप्रियता के कारण विकास और माइट्रोकॉन्ड्रियल ईव (आनुवंशिकी) वैज्ञानिक अनुसंधान के अपेक्षाकृत नए क्षेत्र हैं।

क़ुरआन मुसलमानों को निर्देश देता है सृष्टि के युग्मों की लोकप्रियता के कारण चमत्कारों पर विचार करो " ( क़ुरआन 3:191)

चिंतन युग्मों की लोकप्रियता के कारण की वस्तुओं में से एक कथन है:

"वास्तव में, मैं मिट्टी से मनुष्य बनाने जा रहा हूँ . " (क़ुरआन 38:71)

इतने विशाल हिंदी समाज में सिर्फ डेढ़ यार : दसवीं किस्त

इतने विशाल हिंदी समाज में सिर्फ डेढ़ यार : दसवीं किस्त

अनंत सृष्टि को लेकर भारत में जो जिज्ञासाएँ व्यक्त की गई हैं, यह कहना गलत होगा कि उनके रचयिता ब्राह्मण थे, शायद उनके समय तक तो जाति-प्रथा का जन्म भी नहीं हुआ था. मगर उन्हें लिपिबद्ध सबसे पहले ब्राह्मणों ने ही किया था क्योंकि लिखने-पढ़ने का काम वही लोग करते थे. हर अभिव्यक्ति उसके रचनाकार की मनोवृत्ति का आईना होती है, यही कारण है कि हिन्दू मिथकों को जन-आकांक्षाओं से काटकर उनका दैवीकरण या ब्राह्मणीकरण कर दिया गया है. आज एक भारतीय के लिए इस अंतर का पता लगा पाना लगभग असंभव है.

भारत में लोक जीवन के चिंतन की भी एक समृद्ध परंपरा रही युग्मों की लोकप्रियता के कारण है जो यहाँ के आम लोगों की आशा-आकांक्षाओं और जीवन-जगत के आपसी रिश्तों को सहज ढंग से प्रस्तुत करती है. मगर विद्वान पंडितों के द्वारा उसे हीन समझकर उसका उपहास किया जाता रहा. यह चिंतन लोक जीवन की अभिव्यक्तियों में यथावत मौजूद है. भारत में इन लोक-रचनाओं के संकलन और टीकाएँ भी कम नहीं हुई हैं, मगर उनकी व्याख्याएँ उसी दैवीकरण से आतंकित दिखाई देती रही हैं जिसका शिकार अधिकांश भारतीय साहित्य रहा है.

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