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विदेशी मुद्रा दर राजस्थान

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Forex Reserve: विदेशी मुद्रा भंडार में फिर आई गिरावट, गोल्ड रिजर्व बढ़ा, जानें कैसा रहा हाल?

Forex Reserve Update: देश के विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट देखने को मिली है. पांच अगस्त को समाप्त सप्ताह में 89.7 करोड़ डॉलर घटकर 572.978 अरब डॉलर रह गया है.

By: ABP Live | Updated at : 13 Aug 2022 01:56 PM (IST)

विदेशी मुद्रा भंडार

Forex Reserve Update: देश के विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट देखने को मिली है. पांच अगस्त को समाप्त सप्ताह में 89.7 करोड़ डॉलर घटकर 572.978 अरब डॉलर रह गया है. भारतीय रिजर्व बैंक ने इस बारे में जानकारी दी है. रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक, इससे पहले 29 जुलाई को समाप्त सप्ताह के दौरान, विदेशी मुद्रा भंडार 2.315 अरब डॉलर बढ़कर 573.875 अरब डॉलर रहा था.

क्यों आई गिरावट?
आपको बता दें पांच अगस्त को समाप्त सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार में आई गिरावट का मुख्य कारण विदेशी मुद्रा आस्तियों का घटना है जो कुल मुद्रा भंडार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है.

RBI ने जारी किए आंकड़े
आरबीआई की ओर से जारी किये गये साप्ताहिक आंकड़ों के मुताबिक, समीक्षाधीन सप्ताह में विदेशी मुद्रा आस्तियां (FCA) 1.611 अरब डॉलर घटकर 509.646 अरब डॉलर रह गई है

गोल्ड रिजर्व में आई तेजी
डॉलर में अभिव्यक्त विदेशी मुद्रा भंडार में रखे जाने वाली विदेशी मुद्रा आस्तियों में यूरो, पौंड और येन जैसी गैर-अमेरिकी मुद्राओं में मूल्यवृद्धि अथवा मूल्यह्रास के प्रभावों को शामिल किया जाता है. आंकड़ों के मुताबिक, आलोच्य सप्ताह में स्वर्ण भंडार (Gold Reserve) का मूल्य 67.1 करोड़ डॉलर बढ़कर 40.313 अरब डॉलर हो गया.

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कितना रहा SDR?
समीक्षाधीन सप्ताह में, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के पास जमा विशेष आहरण अधिकार (SDR) 4.6 करोड़ डॉलर बढ़कर 18.031 अरब डॉलर हो गया है जबकि आईएमएफ में रखे देश का मुद्रा भंडार 30 लाख डॉलर घटकर 4.987 अरब डॉलर रह गया है.

Published at : 13 Aug 2022 01:विदेशी मुद्रा दर राजस्थान 56 PM (IST) Tags: IMF RBI dollar forex reserve हिंदी समाचार, ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें abp News पर। सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट एबीपी न्यूज़ पर पढ़ें बॉलीवुड, खेल जगत, कोरोना Vaccine से जुड़ी ख़बरें। For more related stories, follow: Business News in Hindi

पर्यटन से होने वाली आय 26 अरब डॉलर होगी

नई दिल्ली।। पर्यटन क्षेत्र से देश की विदेशी मुद्रा में होने वाली आय 2015 तक 13 प्रतिशत बढ़कर 26 अरब डॉलर हो जाएगी जो फिलहाल 20 अरब डॉलर सालाना है।.

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गिरती सेहत

फिलहाल तो रुपए के साथ कुछ भी ठीक होता नजर नहीं आ रहा है और विशेषज्ञों की आम सलाह यही है कि भारत को पहले के मुकाबले अपनी और ज्यादा कमजोर मुद्रा का अभ्यस्त होना ही होगा

रुपयाः फिलहाल कुछ भी ठीक होता नजर नहीं आ रहा

एम.जी. अरुण

  • नई दिल्ली,
  • 11 जुलाई 2022,
  • (अपडेटेड 11 जुलाई 2022, 3:51 PM IST)

कमजोर मुद्रा जरूरी नहीं कि कमजोर अर्थव्यवस्था की झलक हो, पर वह उसमें निहित उन मुद्दों की तरफ तो इशारा करती ही है जिन्हें दुरुस्त नहीं किया गया तो नुक्सान हो सकता है. इस लिहाज से फरवरी में यूक्रेन पर रूस के हमले के वक्त से ही रुपए में कोई गिरावट चिंता की बात है. रूसी फौजों के यूक्रेन में दाखिल होने के दिन यानी 24 फरवरी को रुपया प्रति डॉलर 75.4 के स्तर पर था, जो 5 जुलाई को अपने सबसे निचले स्तर 79.14 प्रति डॉलर पर आ गया. मैकलाई फाइनेंशियल सर्विस के सीईओ जमाल मैकलाई कहते हैं, ''रुपया जिस तरह गिर रहा है, उसे देखते हुए यह बेशक 80 प्रति डॉलर तक जाएगा.'' वे यह नहीं बता सकते कि कब, क्योंकि यह बाजार की शक्तियों और निश्चित ही युद्ध, महंगाई और कच्चे तेल के दामों पर निर्भर करता है.

रुपए के कमजोर होने की एक बड़ी वजह विभिन्न मुद्राओं के मुकाबले डॉलर का मजबूत होना है. अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने 15 जून को ब्याज दरें 75 आधार अंक बढ़ा विदेशी मुद्रा दर राजस्थान दीं और यह साल 1994 के बाद सबसे बड़ी बढ़ोतरी थी. यह बढ़ती महंगाई पर लगाम लगाने की कोशिश में निचली ब्याज दरों की व्यवस्था से उच्च ब्याज दरों की तरफ बदलाव का संकेत था. बॉन्ड पर ज्यादा रिटर्न पाने की तलाश कर रहे निवेशकों के लिए उच्च ब्याज दरें आकर्षक पेशकश होती हैं. ऐसे वैश्विक निवेशक स्थानीय मुद्राओं में अपने निवेश डॉलर में निवेश के बदले बेच देते हैं, जिससे अमेरिकी मुद्रा मजबूत होती है.

दूसरी वजह बढ़ती महंगाई है. भारत में महंगाई इस जनवरी से लगातार पांचवें महीने भारतीय रिजर्व बैंक की 6 फीसद की ऊपरी सीमा से ज्यादा बढ़ी है. मई में खुदरा महंगाई 7.04 फीसद थी. 4 मई को आरबीआइ की तरफ से रेपो दर में, यानी उस दर में जिस पर वह व्यावसायिक बैंकों को उधार देता है, 40 आधार अंकों की बढ़ोतरी की गई जो अप्रैल में 7.79 फीसद थी. जून में आरबीआइ ने रेपो दर में और 50 आधार अंकों (बीपीएस) की बढ़ोतरी की.

अन्य वजहें हैं शेयर बाजारों में विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआइआइ) की विदेशी मुद्रा दर राजस्थान तरफ से तेज बिकवाली और कच्चे तेल की ऊंची कीमतें, जो 4 जुलाई को ब्रेंट के लिए 111.5 डॉलर प्रति बैरल थीं. जब अमेरिका और ब्रिटेन में बॉन्ड पर प्राप्तियां (बॉन्ड के ब्याज भुगतान पर रिटर्न) बढ़ जाती हैं, तो एफआइआइ को ये बाजार बेहतर जगह नजर आते हैं और इन बाजारों की तरफ पूंजी की उड़ान की यही वजह है. नेशनल सिक्योरिटीज डिपॉजिटरी लिमिटेड के आंकड़ों के अनुसार, एफआइआइ ने 1 अप्रैल, 2021 और 10 जून, 2022 के बीच भारतीय बाजारों में 2.14 लाख करोड़ रुपए के शेयर बेचे. यूक्रेन में जारी लड़ाई से यह बिकवाली और तेज होगी. एचएसबीसी ग्लोबल रिसर्च ने मई के अपने रिसर्च नोट में कहा, ''लंबी लड़ाई से बिक्री और तेज हो सकती है—ऐसी स्थिति में हमारा अंदाज करीब 7 से 8 अरब डॉलर के बाहर जाने का है, यह पिछले वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान देखे गए स्तर के समान है.''

केंद्र सरकार का अलबत्ता यही कहना है कि मुद्राएं भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया भर में कमजोर हो रही हैं. केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 1 जुलाई को कहा, ''आरबीआइ विनिमय दर पर कड़ाई से नजर रखे है. इस दुनिया में हम अकेले नहीं हैं. अर्थव्यवस्था के तौर पर हम खुले भी हैं. अगर आप डॉलर के मुकाबले रुपए और डॉलर के मुकाबले अन्य दूसरी मुद्राओं की तुलना करें, तो रुपए ने दूसरों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया है.''

कमजोर रुपया केवल निर्यातकों के लिए अच्छी खबर है, क्योंकि उन्हें अपने कमाए डॉलर के बदले ज्यादा रुपए मिलते हैं. हालांकि भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए यह नुक्सानदायक हैं क्योंकि इससे चालू खाते का घाटा (सीएडी), या देश के निर्यात और आयात के मूल्य के बीच का फर्क, बढ़ने का अंदेशा होता है. सीएडी में बढ़ोतरी की बदौलत रुपया विदेशी मुद्रा दर राजस्थान फिर और दबाव में आ सकता है और इससे विदेशों से उधार लेना भी महंगा हो सकता है. भारत का सीएडी 2021-22 की चौथी तिमाही में ज्यादा वस्तु आयात की वजह से बढ़कर 13.4 अरब डॉलर (करीब 1 लाख करोड़ रुपए) पर पहुंच गया, जो एक साल पहले इसी अवधि में 8.1 अरब डॉलर (63,936 करोड़ रुपए) था.

रेटिंग फर्म क्रिसिल ने एक हालिया रिसर्च नोट में कहा है कि वस्तुओं की ज्यादा कीमतों की वजह से आयात के महंगे होने और निर्यात के बाहरी मांग में सुस्ती से घिर जाने के साथ सीएडी के इस वित्तीय साल में जीडीपी के 3 फीसद तक बढ़ने की आशंका है. हमारे निर्यात पर गिरते रुपए विदेशी मुद्रा दर राजस्थान के असर को स्वीकार करते हुए सीतारमण ने कहा, ''यही एक चीज है जिस पर मैं बहुत नजर और ध्यान रख रही हूं क्योंकि हमारे कई सारे उद्योगों को विदेशी मुद्रा दर राजस्थान अपने उत्पादन के लिए कुछ चीजें अनिवार्यत: आयात करनी होती हैं.'' क्रिसिल को रुपए-डॉलर विनिमय दर में उतार-चढ़ाव बने रहने और इस वित्तीय साल के खत्म होने तक विनिमय दर के प्रति डॉलर 78 पर आकर टिकने की उम्मीद है.

आरबीआइ रुपए को मजबूत करने के लिए विदेशी मुद्रा बाजारों में हस्तक्षेप करता रहा है. उसकी तरफ से सरकारी बैंकों ने भी डॉलर की भारी बिक्री का सहारा लिया. हालांकि, आरबीआइ के इस कदम का दूसरा पहलू भी है. इससे देश का विदेशी मुद्रा भंडार घटता है. बार्कलेज की एक रिपोर्ट कहती है कि आरबीआइ ने देश की मुद्रा को बचाने के लिए इस साल फरवरी से अपने विदेशी मुद्रा भंडार से 41 अरब डॉलर से ज्यादा खर्च किए. भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 29 अप्रैल को खत्म होने वाले सप्ताह में पहली बार 600 अरब डॉलर के नीचे आ गया. 24 जून को खत्म सप्ताह में हमारा विदेशी मुद्रा भंडार 593.3 अरब डॉलर था.

रुपए की गिरावट थामने के लिए एक और कदम उठाते हुए 1 जुलाई को केंद्र ने सोने पर आयात शुल्क 10.75 फीसद से बढ़ाकर 15 फीसद कर दिया. मैकलाई कहते हैं, ''अभी तक आरबीआइ विदेशी मुद्रा भंडार से डॉलर बेच रहा था. अब केंद्र आगे आया है. दबाव बहुत ज्यादा है और हमें देखना होगा कि क्या यह और तीव्र होता है. समझदारी बरतिए और अगर बाजार में आपका जोखिम है तो खुद को बचाने के लिए संरचनागत प्रक्रिया अपनाइए.''

फिलहाल तो रुपए के साथ कुछ भी ठीक होता नजर नहीं आ रहा है और विशेषज्ञों की आम सलाह यही है कि भारत को पहले के मुकाबले अपनी और ज्यादा कमजोर मुद्रा का अभ्यस्त होना ही होगा.

डॉलर की मजबूती के आगे फीके पड़े बड़े देशों के विदेशी मुद्रा भंडार, अमेरिका और जापान के मुकाबले कहां है भारत

Foreign Reserve डॉलर की मजबूती के कारण पिछले कुछ महीनों में यूरो ब्रिटिश पाउंड और येन की कीमत में तेजी के गिरावट हुई है जिससे दुनिया के बड़े केंद्रीय बैंकों का विदेशी मुद्रा भंडार बड़ी मात्रा में गिरा है।

नई दिल्ली, बिजनेस डेस्क। डॉलर के लगातार मजबूत रहने के कारण वैश्विक विदेशी मुद्रा भंडार में बड़ी गिरावट देखने को मिली है। भारत ही नहीं, यूरोप के बड़े देशों के विदेशी मुद्रा भंडार तेजी से नीचे गिरे हैं। इसके पीछे का कारण इन देशों की ओर से अपनी मुद्रा को सहारा देने के लिए डॉलर को बड़ी संख्या में खर्च करना है।

ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल की शुरुआत से अब तक दुनिया के कुल विदेशी मुद्रा भंडार में 1 ट्रिलियन डॉलर की कमी आ चुकी है और यह घटकर 12 ट्रिलियन डॉलर रह गया है। ब्लूमबर्ग की ओर से 2003 से आंकड़े एकत्रित किए जाने के बाद से अब तक की यह सबसे बड़ी गिरावट है।

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डॉलर दो साल की ऊंचाई पर

अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेड की ओर से ब्याज दर लगातार तीसरी बार 0.75 प्रतिशत बढ़ाने के एलान के बाद से डॉलर पूरी दुनिया की मुद्राओं के मुकाबले लगातार मजबूत हो रहा है। डॉलर, यूरो और येन जैसी मजबूती मुद्राओं के सामने 20 सालों के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है।

Elon Musk says

विदेशी मुद्रा भंडार कमी का कारण

डॉलर की मजबूती के कारण दुनिया के विभिन्न देशों के पास विदेशी मुद्रा भंडारों में मौजूद अन्य विदेशी मुद्राओं जैसे यूरो और पाउंड की कीमत में तेजी से गिरावट हुई हैं। इसके कारण दुनिया के विदेशी मुद्रा भंडारों का मूल्यांकन गिरा है। वहीं, दुनिया के सभी देशों के विदेशी मुद्रा भंडार में कमी का एक अन्य बड़ा कारण डॉलर के सामने अपने देश की मुद्रा के अवमूल्यन में कमी लाने के लिए बड़ी मात्रा में डॉलर को बेचना है।

Indian Railway Irctc Train Cancelled list Today 14 november 2022 (Jagran File Photo)

उदाहरण के लिए, भारत का विदेश मुद्रा भंडार इस साल की शुरुआत से अब तक 96 बिलियन डॉलर गिरकर 538 बिलियन डॉलर पहुंच गया है। इसमें 67 प्रतिशत गिरावट दुनिया की अन्य मुद्राओं में कमी के कारण है, जबकि बाकी की गिरावट भारतीय रुपये में गिरावट रोकने के लिए डॉलर खर्च करने के कारण हुई है। इस साल की शुरुआत से अब तक डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत में 10 प्रतिशत की गिरावट आ चुकी है।

Bank of Maharashtra top performer in all psu bank (Jagran File Photo)

जापान अपनी मुद्रा येन को संभालने के लिए करीब 20 बिलियन डॉलर की राशि को खर्च कर चुका है। 1998 के बाद यह पहला मौका था, जब जापान ने डॉलर के मुकाबले येन की स्थिति को संभालने के लिए करेंसी मार्केट में हस्तक्षेप किया था। इस साल से अब तक डॉलर के मुकाबले येन की कीमत में 19 प्रतिशत की गिरावट हुई है। यूरोपीय देश चेक रिपब्लिक के विदेशी मुद्रा भंडार में भी 19 प्रतिशत की गिरावट हुई है।

Mukesh Ambani to Liverpool FC takeover (Jagran File Photo)

भारत के पास पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार

रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत के पास अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार है। यह अभी भी 2017 के स्तर से 49 प्रतिशत अधिक है, जो कि नौ महीने के आयात के लिए काफी है।

दारोमदार रिजर्व बैंक पर

भारतीय रुपया एक बार फिर संकट में है और करीब गत एक माह में यह 68.7 रुपए प्रति डॉलर से 18 सितंबर तक 73.15 रुपए प्रति डॉलर तक पहुंच गया। उसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा इस बाबत कमान संभालने के बाद 21 सितंबर तक रुपया 95 पैसे प्रति डॉलर सुधर कर 72.20 रुपए प्रति डॉलर तक पहुंच गया।

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किसी भी अन्य केंद्रीय बैंक की तरह भारतीय रिजर्व बैंक भी विदेशी मुद्रा का संरक्षक और नियंत्रक माना जाता है। हालांकि वर्तमान में विदेशी मुद्रा विनिमय दर (रुपए का विदेशी मुद्रा के रूप में मूल्य) बाजार की शक्तियों द्वारा निर्धारित होती है, लेकिन रिजर्व बैंक का हस्तक्षेप भी विनिमय दर निर्धारित करने में अहम भूमिका का निर्वहन करता है। उदाहरण के लिए बाजार में रुपयों में डॉलर का मूल्य (विनिमय दर) डॉलर की मांग और पूर्ति के आधार पर तय होता है। डॉलरों की पूर्ति वस्तुओं और सेवाओं के निर्यात और विदेशी निवेश द्वारा होती है और डॉलरों की मांग वस्तुओं और सेवाओं के आयात और विदेशी निवेश के बहिर्गमन से तय होती है। ऐसे में यदि डॉलरों की मांग, पूर्ति से ज्यादा हो जाती है तो रुपए का अवमूल्यन होता है यानी प्रत्येक डॉलर के लिए ज्यादा रुपए देने पड़ते हैं।

आज विदेशी विनिमय बाजार में यही हो रहा है। कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों और भारी मात्रा में विदेशियों द्वारा डॉलरों का बहिर्गमन देश में डॉलरों की मांग बढ़ा रहा है और रुपए के अवमूल्यन का कारण बन रहा है। यदि रिजर्व बैंक अपने विदेशी मुद्रा भंडार से राशि निकालकर बाजार में डॉलरों की आपूर्ति बढ़ा दे तो स्वाभाविक रूप से रुपए का अवमूल्यन रुक सकता है, लेकिन कुछ दिन पूर्व तक रिजर्व बैंक इसके लिए तैयार नहीं था।

रिजर्व बैंक का यह कहना कि वह बाजार में हस्तक्षेप नहीं करेगा, कई कारणों से सही नहीं है। प्रधानमंत्री ने जब सत्ता के सूत्र संभाले थे, तब देश का विदेशी मुद्रा भंडार मात्र 312.4 अरब डॉलर ही था, किंतु उसके बाद विदेशी मुद्रा भंडार 400 अरब डॉलर से भी अधिक पहुंच गया। इसमें विदेशी निवेश का बड़ा योगदान रहा, चाहे वह प्रत्यक्ष विदेशी निवेश रहा हो या पोर्टफोलियो निवेश। दिलचस्प बात यह है कि जब विदेशी संस्थागत निवेशक भारत के प्रतिभूति बाजार में निवेश करते हैं, तब रिजर्व बैंक उस राशि से विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ाता है।

विदेशी संस्थागत निवेशकों के आने के बाद भी रुपए का मूल्य नहीं बढ़ पाता, संभवत: इसके पीछे एक कारण यह विदेशी मुद्रा दर राजस्थान है कि रुपए का मूल्य बढऩे से निर्यातकों को नुकसान होगा या आयात बढ़ जाएगा। लेकिन जब विदेशी संस्थागत निवेशक निवेश वापस ले जाते हैं तो रिजर्व बैंक का विदेशी मुद्रा दर राजस्थान रुपए को बाजार शक्तियों के अधीन कहकर हस्तक्षेप करने से इनकार कर देना सैद्धांतिक तौर पर गलत है। यदि विदेशी संस्थागत निवेश के चलते डॉलरों की आपूर्ति से रिजर्व बैंक विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ाता है तो विदेशी निवेशकों के बाहर जाने पर रिजर्व बैंक डॉलरों की आपूर्ति क्यों नहीं बढ़ाता?

यह बात सही है कि बढ़ती तेल कीमतों और उसके कारण बढ़ते भुगतान घाटे पर सरकार का नियंत्रण नहीं हो सकता। दूसरी ओर, अमरीकी प्रशासन द्वारा आयकर दरों में भारी कटौती, अमरीका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरें बढ़ाने और अन्य अंतरराष्ट्रीय कारणों से विदेशी संस्थागत निवेशकों के बहिर्गमन पर भी भारत का कोई नियंत्रण संभव नहीं है। लेकिन विदेशी संस्थागत निवेशकों को अनुशासित करते हुए उनके बहिर्गमन को रोकने के प्रयास किए जा सकते हैं।

गौरतलब है कि विदेशी संस्थागत निवेशकों को लाभ पर कोई कर नहीं देना पड़ता, इसलिए वे कभी भी विदेशी मुद्रा दर राजस्थान निवेश को बाहर ले जाते हैं। लंबे समय से ऐसे निवेशकों पर निवेश की शर्त के रूप में लॉक-इन-पीरियड (न्यूनतम तय समयावधि) की मांग की जाती रही है। इसके अलावा कई मुल्कों में संस्थागत निवेशकों द्वारा धन बाहर ले जाने पर कर लगाया जाता है, जिसे 'टोबिन टैक्स' के नाम से जाना जाता है। इसके जरिए विदेशी संस्थागत निवेशकों के बहिर्गमन को हतोत्साहित किया जा सकता है।

वर्तमान समय में रुपए के गिरते मूल्य का मुख्य कारण विदेशी संस्थागत निवेशकों द्वारा भारत में प्रतिभूतियों को बेच कर राशि बाहर ले जाना बताया जा रहा है। ऐसे में अल्पकाल में डॉलरों की मांग बढ़ी है और डॉलरों की अपर्याप्त सामान्य आपूर्ति के मद्देनजर रुपए का मूल्य गिर रहा है। बाजार में डॉलरों की थोड़ी-सी कमी भी रुपए के मूल्य में भारी अवमूल्यन लाती है। वर्ष 2018 के पहले 8 महीनों में हमारा विदेशी मुद्रा भंडार सिर्फ 11 अरब डॉलर कम हुआ है। ऐसे में इस अल्पकालिक समस्या से निपटने के लिए रिजर्व बैंक को बाजार में हस्तक्षेप करते हुए डॉलरों की आपूर्ति बढ़ानी चाहिए और रुपए का अवमूल्यन रोकना चाहिए।

यह समझना होगा कि रुपए का अवमूल्यन देश पर तरह-तरह के बोझ बढ़ाता है। बढ़ता विदेशी मुद्रा भंडार भविष्य के प्रति आश्वस्त तो करता है, लेकिन इस पर आमदनी लगभग शून्य है। जरूरी है कि रुपए का मूल्य स्थिर रखा जाए। सरकार की ओर से जारी बयान, कि भारतीय मुद्रा का प्रति डॉलर 68 से 70 रुपए का स्तर कायम रखना जरूरी है, को फलीभूत करने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक को सक्रिय रूप से हस्तक्षेप करना होगा ताकि रुपए में आगे और गिरावट न आए।

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